शालिनी हर बार की तरह आज भी सज सवर कर उसे देखने आए लड़के वालो के सामने चाय नाश्ते का ट्रे हाथ में लेकर खड़ी हो गई । यह औपचारिकता की १६ वि घटना थी , जिसे वह हर बार इसी तरह निभाते आ रही थी। और हर बार की तरह वही सब होता जो होते चले आ रहा था। लड़के वाले आते, भरपेट चाय नाश्ता करते इधर उधर की बाते होती , और फिर यह कहकर लौट जाते कि,"जान- पहचान वालो से बाते करने पर फोन द्वारा सूचित कर देंग "। और हर बार की तरह फोन भी आता, यह करने को के, हमारे बेटे को सावली नहीं गोरी बेटी चाहिए- आप अपने बेटी के लिए कोई और रिश्ता देख लीजिए।
अबकी बार शालिनी ने ने खुद तय किया के अब वह शो केस की चीज बनकर नहीं रहूंगी और ना ही कोई खरेदी जाने वाली चीज, जिसकी सजा सजाकर, नुमाइश की जाए - अच्छी लगी तो ठीक नहीं तो पसंद ना आने पर खरीदने वाला लौट जाए। अब वह अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाएगी और खुद अपने पैरो पर खड़े होकर समाज को यह दिखादेगी के सावला होना उसकी गलती नहीं और नाही कोई सजा। अपने हुनर से वह सबके मुंह पर ताला लगा देगी।
पर किस्मत ने फिर एक बार उस धोका दे दिया। मात्र दो अंक से वह सरकारी नौकरी पाने पाने में पीछे रह गई। वक्त की मार फिर एक बार उसे शर्मसार करने पर आमादा हो आई । वही देखने दिखाने की औपचारिकता ! आज फिर कोई गोरा लड़का उसे देखने आया था, वह भी हरबार की तरह अपने सावले रंग को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
पर इस बार हर बार के जैसा ना होते हुए कुछ अलग ही हुआ। लड़का जितने उजले रंग का था उससे कई ज्यादा उजला उसका मन था । वह शालिनी को अपने साथ बाते करने के लिए एकांत में ले आया । दोनों की बाते हुई , जिससे उसे शालिनी के सावले रंग में छुपे तमाम अच्छे और सच्चे गुण दिखे जिसे आज तक किसीने नहीं परखा था । वह शालिनी के मधुर आवाज से इतना प्रभावित हुआ के शादी के लिए तुरंत हा कह दी
आज शालिनी के जिन्दगी का वह सुखद क्षण था जिसे शादी का पवित्र बंधन कहते है। सच्चे जीवनसाथी को पाकर वह आंतरिक सुख की अनुभूति कर रही थी , जिसे वह कभी खोना नहीं चाहती है।
निशांत त्रिपाठी
बहुत सुंदर बोध कथा