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नदियों के शोषण के खिलाफ एक और प्रहसन

ByMedia Session

Sep 8, 2020

एक जमाने में डकैतों के लिए बदनाम चंबल में एक बार फिर गांधी,बिनोवा और जेपी की याद ताजा की जा रही है .भिंड जिले में जिला कांग्रेस के तत्वावधान में 5 सितंबर से नदी बचाओ सत्याग्रह यात्रा शुरू हो गयी है। इस सत्याग्रह यात्रा के मूल में डॉ गोविंद सिंह हैं जो पूर्व मंत्री भी हैं और लगातार सात बार के विधायक भी यात्रा राजनीतिक न दिखाई दे इसलिए इसमें साधुओं और जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को भी शामिल किया गया है
5 सितंबर से शुरू हुई ये यात्रा 11 सितंबर तक चलेगी। यह यात्रा जल, जीव, जंगल और नदियों को बचाने के लिए आयोजित की जा रही है। इस सत्याग्रह यात्रा में हर सरकार का उपभोग करने वाले संत कंप्यूटर बाबा के अलावा अपने धूमिल अतीत के लिए चर्चित संत बाली बाबा की टोली भी साथ में है । आने वाले दिनों में इस सत्याग्रह यात्रा में जल पुरुष मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोहन प्रकाश, गांधीवादी एवं समाजसेवी वीवी राजगोपाल, राष्ट्रीय नेता विनोद डांगा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी शामिल होंगे।लहार के इंदिरा गांधी स्टेडियम से आरम्भ हुई ये सत्याग्रह यात्रा का 8 सितंबर को बरही चंबल नदी तट पहुंचेगी वहां से 9 सितंबर को खेरा घाट से रौन पहुंचेगी। दूसरे चरण में 10 व 11 सितंबर को सेंवड़ा व दतिया क्षेत्र में रहेगी।
नदी बचने की इस सत्याग्रह यात्रा में सत्य कितना है और सत्य के लिए आग्रह कितना है ये समझने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि चबल अंचल की नदियां जिनमने खुद चंबल शामिल है अनंतकाल से रेत के अवैध उत्खनन का शिकार रहीं हैं.मेरा चार दशक का अनुभव है कि चंबल की राजनीति इसी अवैध उत्खनन पर निर्भर है. प्रदेश में सत्ता बदलती है लेकिन नदियों का शोषण बादस्तूर जारी रहता है .जब जिसकी सत्ता होती है तब उस दल के नेता नदी को ज्यादा निचोड़ लेते हैं .अवैध उत्खनन से जन्मे ‘रेत के प्रेत ‘ इस अंचल में अनेक पुलिस कर्मियों,पत्रकारों और खुद रेत कारोबारियों की जान ले चुके हैं. चंबल में नदी किनारे के गांवों में गेंहूं -चना की नहीं बल्कि रेत की खेती की जाती है .इस कारोबार में सैकड़ों करोड़ रूपये बाबस्ता रहते हैं .
नदियों का संरक्षण और अवैध उत्खनन रोकने के तमाम प्रयासों में मेरी आरम्भ से रूचि रही है.आप मानें या न मानें मैंने अनेक अवसरों पर जान हथेली पर रखकर इस अवैध कारोबार के खिलाफ रिपोर्टिंग की है लेकिन ये कारोबार न कभी रुका है और न रुक पायेगा .चंबल की नदियों की रेत आदमी को सरपंच से विधायक,विधायक से मंत्री बना देती है.अगर ये रेत न होती तो शायद चंबल के जन प्रतिनिधि भूखों मरते दिखाई देते .नदी बचाओ सत्याग्रह का स्वागत करते हुए मै इस बात से हैरान हूँ कि तीन दशक से लगातार विधानसभा के लिए चुने जाते रहे डॉ गोविन्द सिंह को अचानक नदियों की सुध कैसे आ गयी ?वे खुद ‘नदी नारे’ रहने वाले जमीन और नदी से जुड़े आदमी हैं .फिर क्यों वे तीस साल से चुप हैं ?.वे यदा-कदा इस मामले में विधानसभा के बाहर और भीतर बोलते भी रहे हैं ,लेकिन कुछ समय बात ही उनकी बोलती अपने आप बंद हो जाती है .
प्रदेश में नदियों से रेत के अवैध उत्खनन का संकट सिर्फ चंबल का नहीं है.पूरे प्रदेश में ये धंधा चल रहा है. डॉ गोविंद सिंह से पहले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सपत्नीक नर्मदा की परिक्रमा कर चुके हैं .केंद्र के वर्तमान मंत्री प्रहलाद पटेल भी नदियों की परिक्रमा के लिए जाने जाते हैं .भाजपा के यशस्वी नेता स्वर्गीय अनिल माधव दवे तो नदी संरक्षण करते-करते राजनीति में स्थापित हुए थे लेकिन प्रदेश की नदियों का शोषण नहीं रुकना था सो नहीं रुका .प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नदी को चूसने वाले चेहरे बदल गए हैं ,इसीलिए ये सत्याग्रह भी सामने आये हैं .मै तो कहता हूँ कि इस सत्याग्रह की प्रदेश की नदियों को सख्त जरूरत है लेकिन ये सत्याग्रह तभी शामिल हो सकते हैं जब इन से नदियों का शोषण करने वालों को दूर रखा जाये .
कोई कहेगा नहीं लेकिन मै कहता हूँ कि चंबल में नदी सत्याग्रह का रिश्ता इस अंचल में होने वाले विधानसभा उपचुनावों से है. जैसे ही विधानसभा के उप चुनाव समाप्त होंगे लोग अपनी नदियों के संरक्षण की बात भूलकर दोबारा उनका शोषण करने में जुट जायेंगे .दिखावे के लिए पुलिस इक्का-दुक्का कार्रवाई करती आयी है सो आगे भी करती रहेगी .इस अंचल की जनता सब जानती है,स्थानीय जनता भी नदियों के शोषण से जुड़े इस काले कारोबार की अर्थव्य्वस्था का अंग है ,जब तक जनता को वैकल्पिक रोजगार नहीं मिलता तब तक कोई भी सत्याग्रह कामयाब नहीं हो सकता .चंबल में तो दुनिया का सबसे बड़ा घड़ियाल संरक्षण अभियान भी इसी अवैध रेत उत्खनन के कारण असफल हो गया.आज भी दुनिया की सबसे अधिक साफ़ नदियों में शुमार की जाने वाली चंबल की डॉल्फिनें ,मगर , घड़ियाल और कछुए संकट में हैं.सुप्रीम कोर्ट का दखल भी इन्हें बचा नहीं पा रहा है .चंबल की सुरक्षा के लिए बना टास्क फ़ोर्स खुद बीमार पड़ा हुआ है .
@ राकेश अचल

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