गुरु शब्द अपने आपमें ब्रह्म के समान होता है। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला गुरु होता है। जिसने अज्ञान रुपी शलाका से अंधे हो चुके लोगों की आंखें खोल दी, उनको नमन है ।
जैसी भक्ति की जरूरत ईश्वर के लिये होती है, वैसी ही गुरु के लिये भी होती है ,बल्कि हमें गुरु की कृपा से ही भगवान प्राप्त होते हैं।
हमारे जीवन में शिक्षक के रूप में अनेकों गुरु होते हैं कॉलेज ,स्कूल में पढ़ाने वाले, तमाम तरह के खेल सिखाने वाले, जिम ,व्यायाम सिखाने वाले, योग सिखाने वाले, संगीत सिखाने वाले, जो भी इस तरह की शिक्षायें देते है वे गुरु होते हैं, साहित्य इंजीनियरिंग, डॉक्टरी सिखाने वाले भी गुरु होते हैं,
गुरु की पहचान मुश्किल से होती है, हमें टीचर तो मिल जाता है, परंतु गुरु नहीं, आधुनिक युग में कई शिक्षक शिक्षा देने में कंजूसी करते हैं या मन से शिक्षा नहीं देते, जो शिष्य के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर शिक्षा देते हैं वह वास्तव में सम्मान के पात्र हैं। सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन ने सच्चे और मेहनती शिक्षकों के सम्मान का कार्य शुरू करके शिक्षकों का गौरव बढ़ाया है। अत: शिक्षकों का भी कर्तव्य है कि शिष्यों की उन्नति में योगदान दें, और शिष्यों का भी कर्तव्य है कि, वह अपने शिक्षक या गुरु का सम्मान करें, व उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त हो ।सच्चे शिक्षक कम ही मिलते हैं जो कि शिष्य को अपना सब कुछ अर्पण कर शिक्षा प्रदान करें। जिस तरह कुम्हार चोट करके घड़ा बना देता है, उसी तरह गुरु भी हमारे अवगुणों व कमजोरियों को दूर कर देता है।
प्रेरणा देने वाले, रास्ता दिखाने वाले, सच का बोध कराने वाले भी क्षण भर के लिए ही सही गुरु होते हैं, हमें उन सब के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। शिष्यों का चरित्र निर्माण करने वाले उन्हें पूरी तरह से प्रशिक्षित करने वाले गुरु कि आज अत्यंत आवश्यकता हैं। शिष्यो से कुछ पाने की आशा न करें, और शिष्य भी ऐसा होना चाहिए कि जो अपने गुरु को सर्वस्व अर्पण कर दे इसीलिए ईश्वर से भी बड़ा गुरु को कहा गया है, जिसे ईश्वर से भी बड़ा पद मिला है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े का के लाँगू पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी ,गोविंद दियो बताय।।
गायत्री शर्मा ‘प्रीत’