देखो आप दोस्त साइबर स्पेस के खतरों की बात अब काल्पनिक नहीं रह गई है। पिछले दिनों ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्सनल वेबसाइट के टि्वटर अकाउंट को ही हैकरो ने हैक कर लिया था ।
सूत्रों के मुताबिक हैकर ने कोविड-19 रिलीफ फंड के लिए डोनेशन में बिटक्वॉइन की मांग की। हालांकि तुरंत ये ट्वीट्स डिलीट कर दिए गए।
पीएम मोदी के ट्विटर अकाउंट हैक होने पर ट्विटर प्रवक्ता का भी बयान सामने आया था , उन्होंने कहा था कि ‘हम इस स्थिति से अवगत हैं और अकाउंट की सिक्यॉरिटी के कुछ कदम उठाए हैं। हम इस पूरे हालात की जांच कर रहे हैं, हालांकि अन्य खातों के प्रभावित होने के बारे में हमें अभी कोई जानकारी नहीं है।’
मेरा सवाल यह है दोस्त की आखिर वर्चुअल जंग रुकेगी कैसे ?
आज देखा जाए तो दोस्तों वर्चुअल आतंकवाद सेंधमारी और सैन्य व आर्थिक महत्व की सूचनाओं के लीक होने जैसी घटनाओं ने साबित कर दिया है कि सूचनाओं के इलेक्ट्रॉनिक संजाल में घुसपैठ की रोकथाम के पुख्ता प्रबंध नहीं करने का ही खामियाजा दुनिया की कई सरकारों को भी उठाना पड़ रहा है , और भविष्य में भी चुनौतियां बनी रहेगी।
आपको याद होगा जब पुलवामा हमला हुआ था , उसके तुरंत बाद हमें खबर मिली थी कि पाकिस्तानी हैकरों ने भारत से जुड़ी कम से कम 90 वेबसाइटों को हैक कर लिया था। इन हैकरो के निशाने पर दोस्त उस वक्त भी अधिकतर वित्तीय संचालन और पावर ग्रिड से संबंधित वेबसाइटे हैकरों के निशाने पर थी।
दोस्तो हमने पिछले दिनों ही चीन पर साइबर स्ट्राइक करके चीनी एप्प्स एप्लीकेशन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया । हम साइबर कहे या वर्चुअल आभासी जंग असल में अब इसका खतरा वास्तविक है। दोस्त मामला सिर्फ भारत ,पाकिस्तान या चीन तक सीमित नहीं है, बल्कि मुझे लगता है इसमें महाशक्तियां भी शामिल है।
साइबर युद्ध मेरा कहने का मतलब है कि इंटरनेट के जरिए संचालित की जाने वाली वे अपराधिक और आतंकी गतिविधियां, जिनसे कोई भी व्यक्ति या संगठन देश-दुनिया और समाज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। अभी तक दोस्त देश में इस तरीके से गैरकानूनी काम हुए है और हो रहे है , जैसे कि ऑनलाइन ठगी, बैंकिंग नेटवर्क में सेंध , लोगों को परेशान करना जिसमें खासकर महिलाओं को उनकी गलत प्रोफाइल बनाकर परेशान करना व हनी ट्रैप जैसे भी मामले सामने आते रहे है।
असल में समस्या यह है दोस्त की साइबर युद्ध छेड़ने वाले अपराधियों का चेहरा साफ हमें नहीं दिखता है । दुनिया के किसी भी कोने में बैठ कर सेंधमार कर सरकारी प्रतिष्ठानों की वेबसाइटों को चौपट करने के अलावा बैंकिंग से जुड़ी गतिविधियों में सेंधमारी करके अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। अगर हम सरकारी वेबसाइटों को निशाना बनाने की बात करें तो ऐसा अक्सर दो देशों के बीच तनाव पैदा होने के हालात में ही सेंधमार करते है ।
ऐसी स्थिति में देखा गया है कि हैकर ना सिर्फ सरकारी वेबसाइटों को अपने नियंत्रण में लेकर ठप कर डालते हैं, बल्कि दोस्त सरकारी दूतावासों, प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों ,अधिकारियों के लॉगइन विवरण, ईमेल पासवर्ड, फोन नंबर चुरा लेते हैं और उन्हें दूसरी वेबसाइटों पर इस दावे के साथ लीक कर देते हैं कि फलां देश की साइबर सुरक्षा कितनी कमजोर है। खासकर भारत की सरकारी वेबसाइटों के बारे में हमारे देश के संदर्भ में हैंगिंग की यह मामला बड़ी घटना मानी जाएगी। इसका दो वजह मुझे लगता है । एक तो यह की सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में भारत खुद को अगुआ देश मानता रहा है, हमारे भारत के आईटी विशेषज्ञ आज पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं और अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थापित सिलिकॉन वैली की स्थापना तक में भी युवा भारतीय आईटी विशेषज्ञों की भूमिका अहम मानी जाती है। आपको याद होगा साइबर खतरों को को भांपते हुए ही सरकार ने 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी कर चुकी है, जिसमें देश के साइबर सुरक्षा के बुनियादी ढांचे की रक्षा के लिए प्रमुख रणनीतियों को अपनाने की बात कही गई थी। दोस्त इन्हीं नीतियों के तहत देश में चौबीसों घंटे काम करने वाली एक नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर की स्थापना शामिल है जो कि देश में महत्वपूर्ण सूचना तंत्र के बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में काम कर सके।
अब सवाल मेरा यह है कि क्या इन उपायों को अमल में लाने में कोई देरी या चूक हुई है, अथवा यह हमारे सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की कमजोर कड़ियों का नतीजा है कि एक ओर सेंधमार जब चाहे, जो चाहे सरकारी प्रतिष्ठानों की वेबसाइटे ठप कर रहे हैं और दूसरी और साइबर आतंकी भी अपनी गतिविधियां चलाने में सफल हो रहे है ? अब तो प्रधानमंत्री जी के पर्सनल टि्वटर अकाउंट को हैक कर लिया जा रहा है । आखिर कैसे रुकेगी वर्चुअल जंग?
भारत में दोस्त इस प्रकार के साइबर हमले देख रहे हैं कि लगातार बढ़ता जा रहा है। यह आंकड़ा तो खुद एडवर्ड स्नोडेन ने ही मार्च 2013 में मुहैया कराया था , जिसमें स्नोडेन ने बताया था कि बाहर बैठे सेंधमारो ने भारतीयों की 6.3 अरब खुफिया सूचनाओं तक पहुंच बना ली है। आज हालात यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रक्षा व विदेश मंत्रालय, भारतीय दूतावासों, मिसाइल प्रणालियों, एनआईसी, दोस्त यहां तक की खुफिया एजेंसी सीबीआई के कंप्यूटरों पर भी साइबर हमले कर उनकी जासूसी हो चुकी है। कुछ समय पहले ही यह बात भी सामने आया था कि विशुद्ध कारोबारी उद्देश्यों से भी हमारी संचार सेवाओं को निशाना बनाया जा चुका है और जा रहा है।
आपको याद होगा जुलाई 2010 में इनसेट -4 बी की बिजली प्रणाली में गड़बड़ी के कारण उसके एक सोलर पैनल ने काम करना बंद कर दिया था जिससे उसके आधे ट्रांसपोंडर ठप हो गए थे। बाद में पता चला कि यह काम व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के तहत किया गया था। किसी ने उसमें स्टकसनेट नामक वायरस पहुंचा दिया था, ताकि इनसेट से जुड़ी टीबी चैनल चीनी उपग्रह पर चले जाएं। ऐसे ही एक और घटना दोस्त जुलाई 2015 में हुई थी, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वेबसाइट एंट्रिक्स को हैक कर लिया गया था। इस करतूत के पीछे भी चीन का ही हाथ माना गया था । यह सब घटनाएं दोस्तों साबित करती है कि अगर कभी दुनिया में साइबर युद्ध के हालात पैदा हुए तो भारत को निशाना बनाना कितना आसान होगा। वैसे दोस्त राहत की बात यह है कि हमारे देश में वर्ष 2015 में इंटरनेट के जरिए होने वाले आपराधिक गतिविधियों के लिए एक विशेष कार्य बल बनाया जा चुका है। इसके अलावा ही राष्ट्रीय स्तर पर 24 घंटे काम करने वाली कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम साइबर सुरक्षा के इमरजेंसी रिस्पांस और क्राइसिस मैनेजमेंट के सभी प्रयासों में तालमेल के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने का भी प्रस्ताव किया गया है,उम्मीद है इससे वर्चुअल जंग आने वाले वक्त में नियंत्रण में होगा।