“निज भाषा का नहीं गर्व जिसे ,
क्या प्रेम देश से होगा उसे”
हिंदी दिवस के अवसर पर लोकसदन मंच के द्वारा एक चर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रुप में “श्री राकेश श्रीवास्तव” जी लखनऊ से जुड़े। कार्यक्रम की रूपरेखा लोकसदन अखबार के संपादक जी के मार्गदर्शन में बनाया बनाई गई तथा कार्यक्रम का संचालन इंजी. रमाकान्त श्रीवास जी ने किया । इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रांतों से बहुत सारे लेखक-लेखिका, साहित्यकार जुड़े ।कार्यक्रम की शुरुआत “अंजना सिंह “जी ने बहुत ही सुंदर ढंग से हिंदी के महत्व को बताते हुए कहा कि जिस प्रकार नारी का श्रृंगार बिंदी है उसी तरह भारत की शान हिंदी है। हिंदी के प्रति प्यार जगाना ही होगा , तो वही रोहित जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि- हिंदी को दूसरे दर्जे पर मान लिया गया है यह सबसे बड़ी विडंबना है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि यदि हम फोन पर या एटीएम में भाषा के चयन की प्रक्रिया में देखें तो हिंदी के लिए 2 दबाएं सुनते हैं अपने ही देश में हिंदी का दर्जा दूसरा क्यों। उन्होंने बहुत ही अच्छा सुझाव दिया कि बच्चों में हिंदी के प्रति आकर्षण बचपन में ही जगाना होगा और उन्हें बताना होगा कि हिंदी का महत्व क्या है। इसी क्रम में डॉक्टर मृदुला जी ने कहा कि अनुवाद कार्य को प्रोत्साहित करना चाहिए अन्य भाषाओं की उपयोगी पुस्तकों को अनुवादित करनी चाहिए। रमाकान्त जी ने -अपनी बात रखते हुए कहा कि अपने ही देश में हम तिरस्कृत महसूस करते हैं जब हम हिंदी बोलते हैं, तो सबसे पहले खुद में स्वाभिमान जगाने की जरूरत है। वही कार्यक्रम में जुड़ी ज्योति सिंह जी- ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हिंदी में सभी प्रतियोगी परीक्षाएं होनी चाहिए। कई बार हिंदी शिक्षक को अपमानित होना पड़ता है , इस भेदभाव को मिटाने के लिए विद्वानों को आवाज उठानी चाहिए और हिंदी तथा हिंदी भाषी , हिंदी में कार्य करने वाले लोगों ,के सम्मान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ।डॉक्टर ममता श्रीवास्तवा,सरूनाथ जी ने कहा कि – भाषा को समृद्ध करने के लिए आपस में वार्तालाप अपनी ही भाषा में करने का प्रयास करें तथा खुद में गौरवान्वित महसूस करें कि हम हिंदी भाषी, हिंदी के ज्ञाता और हिन्दुस्तान हैं। कार्यक्रम की अगली कड़ी में संगीत के शिक्षक घनश्याम तिवारी जी- ने उदाहरण के साथ अपनी व्यथा को बताया और कहा बहुत दुख होता है जब अपने ही घर में अपनी भाषा को अपने ही बच्चे नहीं पढ़ पाते हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं इसके पीछे वर्तमान परिवेश तथा शिक्षा प्रणाली का भी हाथ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ से जुड़े ” राकेश श्रीवास्तव” जी ने कहा कि- बहुत ही सार्थक चर्चा रही ,सभी ने अपनी बात अच्छे ढंग से कहीं, उन्होंने कहा कि- भाषा को सुचारू रूप से जनसंपर्क तक पहुंचाने के लिए उसको सरल और सुगम होना चाहिए। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि- हमारे जितने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे सबने विलायत में शिक्षा पाई लेकिन अपनी आजादी के लिए हिंदी ही अपनाई ,क्योंकि आज भी यदि हम आंकड़े उठाकर देखें तो पूरे विश्व में 9% लोग ही अंग्रेजी में बात करते हैं जिनमें 5% अंग्रेजी मूल के निवासी तथा 4% अन्य लोग हैं फिर भी क्या वजह है कि हमारी हिंदी इतनी उदासीन और तिरस्कृत है, इस पर विचार करने की जरूरत है।
कार्यक्रम के अंत में सभी ने मिलकर हिंदी दिवस के दिन शपथ लिया कि हम सब मिलकर कोशिश करेंगे कि हिंदी को उसका खोया हुआ सम्मान अवश्य दिलाएं अन्य भाषाओं से उपयोगी प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों का अनुवाद हिंदी में करें और जन जन तक हिंदी को पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
जय हिंद जय हिन्दी।