मिसेज महाजन सुबह से ही व्यस्त थीं। जब से उन्होंने सोसायटी का चेयरमैन पद संभाला है, रोज किसी न किसी मीटिंग goमें जाना और लोगों से मिलना जुलना उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया है। हालांकि वो पली बढी विदेश में ,किन्तु उनके पूर्वजों की विरासत संभालने उन्हे स्वदेश लौटना पड़ा। कल हिंदी दिवस के अवसर पर उन्हें एक वक्तव्य देना है और क्या बोले, सोच कर वह रात भर सो ना सकीं। सुबह-सुबह ही उन्होंने अपने सेक्रेटरी को फोन लगाकर एक अच्छे भाषण की मांग की। सेक्रेटरी ने तुरत फुरत एक हिंदी के शिक्षक को फोन लगाया और एक बढ़िया भाषण तैयार करवाया। लेकिन यह क्या मिसेज महाजन ने भाषण का पर्चा देखा और भड़क उठीं तुम्हें पता नहीं मैं यह सब भाषाएं नहीं पढ़ सकती , शिक्षक को पुनः बंगले पर बुलाया गया और वह ठहरा हिंदी का महारथी हिग्लिश लिखना तो उसके बाएं हाथ का खेल था मानो ,
उसने पूरा भाषण हिंग्लिश में अनुवादित कर दिया अब मिसेज महाजन आश्वस्त हो तैयार होने लगी।
स्टेज पर पहुंचते ही उनका जोरदार स्वागत यह कहकर किया गया कि वह विदेश में पैदा हुई और पली-बढ़ी किंतु उनका देश प्रेम एवं मातृभाषा प्रेम उन्हें स्वदेश वापस ले आया है और मि0 महाजन ने बड़े उत्साह से हिंग्लिश में लिखा हुआ भाषण दिया। सभागार तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा और शायद इस गूंज में हिंदी जो 70 वर्षों से उदासीनता की शिकार है और उदास होकर आंसू बहाती हुई किसी कोने में दुबक गई और एक बार फिर से ” हिंदी की गूंज” तालियों की गूंज में कहीं दूर बहुत दूर होती चली गई।
✍डॉ ममता श्रीवास्तवा,सरूनाथ ।