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हिन्दी भाषा के संदर्भ में ओछी मानसिकता कतई जायज नहीं

ByMedia Session

Sep 13, 2020

एक कहावत आपलोगों ने सुनी होगी – “आपहि टांग उघारिये, आपहि मरिये लाज “! अर्थ तो समझ ही गए होंगे। हिन्दी भाषा के संदर्भ में ये लोकोक्ति सटीक बैठती है। खासकर उन ओछी और नीच मानसिकता वालों के लिए जो हिन्दी भाषा के लिए मातृ शब्द का इस्तेमाल करते हैं लेकिन सोशल मीडिया पर हिन्दी के नाम पर जम कर गालियाँ परोसते हैं। सड़ी – गली हुई भाषा, मृत भाषा , हिन्दी का शोक दिवस जैसे शब्दों का इस्तेमाल न सिर्फ अपनी भाषा के प्रति आपकी गिरी हुई निष्ठा को दर्शाती है बल्कि ऊपर से सम्भ्रांत और हिन्दी का शुभचिंतक दिखने का ढोंग करनेवाले आपके असल व्यक्तित्व को भी उजागर करती है। आलोचना अच्छी बात है लेकिन ये अपमान और खिल्ली उड़ाने जैसी भावना के साथ नहीं होनी चाहिए। और इस मामले में हम किसकी और क्यों खिल्ली उड़ा रहे हैं ? वैसे तो मैं नहीं मानता कि हिन्दी इतनी भी दुर्दशा वाली स्थिति में है। अगर निम्नलिखित आंकड़ों पर गौर किया जाय –

  • हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चार भाषाओं के क्लब में शामिल है। विश्व में 500 से 600 मिलियन लोग हिन्दी भाषी हैं।
  • आज कई विदेशी छात्र हमारे देश में हिन्दी और संस्कृत भाषाएं सीखने आ रहे हैं। विदेशी छात्रों के इस झुकाव की वजह से देश के कई विश्वविद्यालय इन छात्रों को हमारे देश की संस्कृति और भाषा के ज्ञानार्जन के लिए सुविधाएं प्राप्त करवा रहे हैं।
  • विदेशों में हिन्दी भाषा की लोकप्रियता यहीं खत्म नहीं होती। विश्व की पहली हिन्दी कॉन्फ्रेंस नागपुर में सन् 1975 में हुई थी। इसके बाद यह कॉन्फ्रेंस विश्व में बहुत से स्थानों पर रखी गई। दूसरी कॉन्फ्रेंस- मॉरीशस में, सन् 1976 में, तीसरी कॉन्फ्रेंस-भारत में, सन् 1983 में, चौथी कॉन्फ्रेंस – ट्रीनिडाड और टोबैगो में, सन् 1996 में पांचवीं कॉन्फ्रेंस-यूके में, 1999 में, छठी कॉन्फ्रेंस-सूरीनाम में, 2003 में और सातवीं कॉन्फ्रेंस-अमेरिका में, सन् 2007 में।
  • आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी।
  • हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अंग्रेज हैं) ने किया।
  • हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य ‘द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदास’ कोलंदन विश्वविद्यालय में पहली बार एक अंग्रेज विद्वान जे.आर.कारपेंटर ने प्रस्तुत किया था। अब मुद्दे पर आते हैं। अगर फिर भी आप हिन्दी को दुर्दशा वाली भाषा मानते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन ? आप जनता, ब्रिटिश सरकार या भारत सरकार ? अगर भारत सरकार तो कौन वाली सरकार नेहरू सरकार से लेकर मोदी सरकार में किसी का नाम बता दीजिये। चलिये कुछ सुझाव ही दे दीजिये कि हिन्दी के उत्थान के लिए क्या किया जाय। अगर भारत सरकार सख्ती से हिन्दी को पूरे देश में अनिवार्य बना देती है तो आप जैसे निठल्ले मौसमी आलोचक अन्य भाषाओं के संरक्षण का रोना शुरू कर देंगे। भाई दिल से नहीं तो कम से कम शब्दों के ईमानदार बनिये। आपलोगों को पता होगा विश्व की सबसे मृत मानी जानेवाली भाषा लैटिन है जो कई भाषाओं, आविष्कारों और शोधों की जननी रही है। फिर भी उस भाषा का सम्मान कम नहीं हुआ है। बेहतर होगा मेरी पहली लाइन में लिखी लोकोक्ति पर गौर करें। हम स्वयं ही अपनी भाषा का सम्मान नहीं करेंगे तो बदनामी हर जगह होगी। ………. विवेक सिन्हा

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