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हास्य व्यंग्य -_- कवि‍ग्रस्‍त नगर मेरा शहर

ByMedia Session

Sep 13, 2020

डॉ टी महादेव राव विशाखपटनम

 मेरा शहर मुझे लगता है बहुत उर्वरा है। वरना जहॉं उत्‍पादन के कीर्ति‍मान बड़ी कठि‍नाई से स्‍थापि‍त होते हैं, वहीं कवि‍यों की संख्‍या बड़ी आसानी से बढ़ रही है। मुझे डर है कि‍ भारत की जनसंख्‍या की तरह पूरे का पूरा शहर कवि‍ग्रस्‍त, कर्फ्यूग्रस्‍त की तरह न हो जाये। कल को इस शहर का हर शख्‍स केवल कवि‍ ही न नज़र आये। मुझे आशा है मेरे शहर के कवि‍ इस बात पर नाराज न होंगे।

 इस बात का पता बड़ी देर से चला कि‍ मेरे शहर के हर तीसरे घर में एक कवि‍ है। हो भी क्‍यों न? जब सारे वातावरण में कवि‍ताई कण भरें हों।

 एक शख्‍स बेचारे तबला बजाते रहे और कवि‍यों के संपर्क में आकर तबला बजाना छोड़ दि‍या। अब मंच पर से श्रोताओं के कान बजा रहे हैं। आखि‍र तबले पर आप कि‍तने तरह की ताल नि‍कालेंगे? अधि‍क से अधि‍क दस या बीस कि‍न्‍तु कवि‍ता में ताल ही क्‍यों – नदी-नाले, समुद्र और न जाने क्‍या क्‍या वि‍षय ले सकते हैं और सारे संसार की वस्‍तुओं पर कवि‍ता सुना सकते हैं। दूसरे महोदय अति‍ आधुनि‍कता का जामा पहने कवि‍ताई कुछ ऐसी करते हैं कि‍ सामने वाला श्रोता बाईसवीं सदी की ओर दौड़ने लगता है। आखि‍र उनकी कवि‍ता में लेजर कि‍रणों, कंप्‍यूटर, इंटरनेट, र्इ मेल-फीमेल, प्रगति‍, प्रधानमंत्री, परमाणु ऊर्जा जैसे शब्‍दों की भरमार होती है।

 इस तरह कवि‍ग्रस्‍त मेरा शहर अपनी संस्‍कृति‍ और सभ्‍यता का जीता जागता उदाहरण है। एक ओर औद्योगि‍क वातावरण के कारण ध्‍वनि‍ प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण ग्रस्‍त है तो दूसरी ओर मेरे शहर के कवि‍ सामाजि‍क वायुमंडल को साहि‍त्‍यि‍क प्रदूषण से ओत-प्रोत करने में सक्रि‍य हैं। एक उदाहरण सुनि‍ये कि‍ मेरे शहर के कवि‍ क्‍यों लि‍खते हैं।

 एक कवि‍ से मैं ने पूछा – आप कवि‍ता क्‍यों लि‍खते हैं? उन्‍होंने सारगर्भि‍त उत्तर दि‍या – अपने शहर में टाइमपास के लि‍ये क्‍या है? सि‍नेमा हॉल जहॉं सभी बकवास फि‍ल्‍में लगती हैं। मैं टाइमपास करने के लि‍ये कवि‍ता लि‍ता हूँ। जैसे कवि‍ता कवि‍ता न होकर पापकॉर्न हो जो टाइमपास के लि‍ये खायी जाती हो।

 इस तरह के कवि‍ग्रस्‍त शहर की वरि‍ष्‍ठ साहि‍त्‍य समि‍ति‍ समर से मुझे एक कवि‍गोष्‍ठी का आमंत्रण पत्र मि‍ला – आप चूँकि‍ समीक्षा, रि‍पोर्टि‍ग आदि‍ लि‍खते और छपवाते हैं सो एक माननीय समीक्षक की हैसि‍यत से आप सादर आमंत्रि‍त हैं। कवि‍तायें सुनें और अच्‍छी समीक्ष करें और छपवायें – ऐसा हमारा अनुरोध है। वि‍शेष – आते ही प्रति‍ज्ञा करनी होगी कि‍ आप कोई कवि‍ता नहीं सुनायेंगे।

 नि‍र्धारि‍त समय पर पहुँचा। प्रति‍ज्ञा कि‍या कि‍ इस समय कोई कवि‍ता नहीं सुनाऊंगा। संचालक महोदय ने आसंदी सम्‍हाली और संचालन आरंभ कि‍या। वे समि‍ति‍ के अध्‍यक्ष थे और उनका नाम जाज्‍वल्‍यमान ज्‍वलंत था।

 आप सबका समर साहि‍त्‍य समि‍ति‍ स्‍वागत करती है। इस सुहावनी संध्‍या पर सर्वप्रथम मैं जि‍न्‍हें आमंत्रि‍त कर रहा हूँ उनके बारे में –

 खोल देंगे आते ही आपके दि‍ल का फाटक

      ऐसे कवि‍ हैं हमारे नीरस कुमार घातक

घातक जैसा संघातक नाम लि‍ये हुए दुबले से, उदास से खोये खोये से शख्‍स ने गला खखार कर शुरू कि‍या –

 एक सामयि‍क कवि‍ता प्रस्‍तुत है – श्‍वान

 कुत्ता आया दुम हि‍लाया

 दूसरा कुत्ता कान खुजाया

 तीसरे ने कि‍या भौंकना शुरू

 हर जगह कुत्तों का शोर है गुरू

 यहॉं कुत्ते वहॉं कुत्ते

 जहॉं देखी वहॉं कुत्ते

 कवि‍ता समाप्‍ति‍ पर मैं ने पूछा – बंधू! यह कुत्तों वाली कवि‍ता क्‍या बला है? वे बोले इस समय पूरे शहर में केवल कुत्ते ही कुत्ते नज़र आ रहे हैं, कारण कि‍ यह समय श्‍वान प्रसव का समय जो है। इसी सामयि‍क संदर्भ पर मेरी यह कवि‍ता थी। सभी ने वाह-वाही की झड़ी लगा दी। शायद अपनी अपनी कवि‍ता के लि‍ये वाह-वाही का आरक्षण जो कराना था।

 संचालक ने पुकारा –

 पि‍घल जायेंगे सभी सुनकर जो होंगे सख्‍त

 गोष्‍ठी की शोभा बढ़ायेंगे कर्कश प्रसाद बेवक्‍त

 फि‍ल्‍मों के खलनायकों सी रूप-रेखा लि‍ये भयावह चेहरे पर खूँटि‍यों सी दाढ़ी लि‍ये, अत्‍यधि‍क पावर का चश्‍मा लगाये एक महोदय सभी की नजरों के केन्‍द्र थे। वास्‍तव में वे कर्कश प्रसाद थे – खखार कर उन्‍होंने इस बात का समर्थन कि‍या –

 एक गजल पेशे खि‍दमत है ---

 अब हम जायें तो जायें कहॉं बताओ यारों

 बेमंज़ि‍ल हूँ मुझे कोई राह दि‍खाओ यारों

 जाने को सब चलदि‍ये छोड़ मुझे तनहा

 मैं पड़ा रहूँ कब तक पत्‍थर सा बताओ यारों

 बेवक्‍त कहता जरा ध्‍यान दीजि‍ये आप

 मुझ शायर को अब यॅूं न सताओ यारों

 मैंने पूछा – बेवक्‍त जी! वह कौन सी बात है जि‍स पर लोग आपको सताते है?

 वे बि‍गड़ गये – भाई समीक्षक की दुम ! यह तो तुक जमाने वाली बात थी और इतना भी नहीं समझे आप? मैं ने पूछा – जबरदस्‍ती तुक की क्‍या बात है? वे अपने खलनायकी चेहरे को और भयानक बनाते हुए बोले – मैं आपसे कुछ नहीं कहना चाहता लो! रूठ गये! अन्‍य श्रोताओं ने तालि‍यॉं बजाई। पता नहीं मेरी नुक्‍ताचीं पर या बेवक्‍त की ग़ज़ल पर।

 आप घातक और बेवक्‍त को सुन चुके। आपके दि‍लों के तारों को झनझनाती हुई आ रही हैं हमारी समि‍ति‍ की एक मात्र कवयि‍त्री -  

 सम्‍हालि‍ये न हो जायें आपके गले खश्‍क

 सुनाने आ रही हैं रजत कुमारी पुष्‍प

 संचालक ज्‍वलंत की घेषणा के बाद पुष्‍प शुरू हो गईं – उपस्‍थि‍त सज्‍जनों को मेरा नमस्‍कार। एक नई कवि‍ता प्रस्‍तुत कर रही हूँ –

 रि‍क्‍शे पर मैं जा रही थी

 वह पीछे कर रहा था अनुसरण

      धड़कने लगा मेरा अंत:करण

 काफी देर असमंजस ने दि‍ल में घर कि‍या

 बाद में पता चला था वह डाकि‍या

 पत्र देने कर रहा था मेरा पीछा

 और जि‍से मैं ने समझा था नीचा

 नीचा शब्‍द शायद – मैं कुछ कहने की स्‍थि‍ति‍ में नहीं था फि‍र भी ये शब्‍द फूटे, क्‍योंकि‍ आधुनि‍क कवि‍ता (?) वाली कवयि‍त्री भी आधुनि‍क सज्‍जा से परि‍पूर्ण थी।

 पीछा शब्‍द के लि‍ये शब्‍द नीच को नीचा बनाया मैं ने। मैं शांत हो गया। कवि‍गण तारीफों के पुल बॉंध रहे थे, जि‍न्‍हें अपने अलग अंदाज में कवयि‍त्री स्‍वीकार कर रही थी।

 मध्‍यांतर हुआ कुछ समय का। अध्‍यक्ष के घर में यह गोष्‍ठी हो रही थी। उनकी श्रीमती जी ने चाय के साथ प्रवेश कि‍या और कहा –

 सार सार को गह लि‍ये थोथा देय उड़ाय

 आपकी खि‍दमत में पेश कर रही हूँ चाय

 सबने वाहवाह की कि‍लकारी मारी। मेरे भौंचक चेहरे को देख एक कवि‍ ने कहा – समि‍ति‍ के अध्‍यक्ष की पत्‍नी हैं। आखि‍र कवि‍यों की सोहबत का असर रंग लाया। चाय पीते हुए आसपास के दीवारों पर टंगे चि‍त्रों पर ध्‍यान गया।

 नि‍राला, पंत, बच्‍चन और धर्मवीर भारती के चि‍त्र टंगे हुए थे। मैं एक (शायद आखि‍री भी) गोष्‍ठी में उपस्‍थि‍त होकर इस तरह ऊब गया था। हमारे पूज्‍य स्‍वर्गीय कवि‍गण कैसे इन गोष्‍ठी रूपी गोलि‍यों को झेलते होंगे। उनके लि‍ये मेरा शीश झुक गया।

 अब संचालक सह अध्‍यक्ष को कवि‍ता सुनाने के लि‍ये आमंत्रि‍त करते हुए समि‍ति‍ के सचि‍व कर्कश प्रसाद बेवक्‍त ने कहा –

 कहीं नहीं उनकी कवि‍ता का अंत

 कवि‍ता सुना रहे हैं जाज्‍ज्‍वल्‍य

 अध्‍यक्ष जी ने सारी कवि‍ता एक सॉंस में पढ़ी –

 जी में आता है कि‍ उठकर आशि‍यॉं को फूँक दूँ

     फूँक दूँ ये चांद तारे आसमॉं को फूँक दॅूं

 जी में आता है कि‍ उठकर आज सागर तोड़ दूँ

 मारकर पत्‍थर पे खंजर अपना खंजर तोड़ दूँ

 तोड़ने से पहले कश्‍ती इसका लंगर तोड़ दूँ

 अपना सर फोडूँ न फोडूँ गैर का सर फोड़ दूँ

 मैं ने कहा – उग्रवादि‍यों की रह फोड़ना, तोड़ना, जलाना, फूँकना क्‍यों कर रहे हैं आप अपनी कवि‍ता में? वे बड़े धीर-गंभीर होकर बोले – जब तक पुरानी चीजें नष्‍ट नहीं हो जायेंगी, तब तक नव नि‍र्माण कैसे होगा? सो मैं अपनी कवि‍ता में नव नि‍र्माण के लि‍ये तोड़-फोड़, जलाना-फूँकना ही सोचता हूँ। श्रोताओं ने वाहवाही की।

 चाहे मि‍ले कॉंटे या खि‍ले गुलाब

 हास्‍य कवि‍ता ला रहे हैं बौड़म प्रसाद जुलाब

 अध्‍यक्ष के उद्बोधन के बाद कवि‍ शुरू हो गये –

 एक कवि‍ता दे रहा हूँ लीजि‍ये (ठहाके)

 कह नहीं सकता मुझे उनसे है प्‍यार

 दि‍ल गुदगुदाये मुँह से टपके लार

 जुलाब की बात जरा ध्‍यान रखि‍ये

 वेटि‍न्‍ग लिस्‍ट में हमारा नाम बाद रखि‍ये

     क्‍योंकि‍ मेरे पास भी कहानी का टि‍वस्‍ट है

     और प्रेमि‍काओं की भी लंबी लि‍स्‍ट है

 सारे सदस्‍य बनावटी ठहाके लगा रहे थे। मुझे मि‍तली आ रही थी। संभला कि‍सी तरह।

 ज्‍वलंत का स्‍वर कमरे में गूँजा --

      अब आखि‍र में जि‍नकी कवि‍ता में हैं खून और आग

       ऐसे शायर हैं हमारे इंकलाबी हुसैन इंकलाब

 शायर बोले – हाज़ि‍रीने महफि‍ल! नज्‍़म का नाम है खून !

 लखनऊ में खून कलकत्ते में खून लुधि‍याने में खून

 मुंबई में खून अमृतसर में हरि‍याने में खून

 मस्‍जि‍दों में खून सि‍नेमाघरों में खून मयखाने में खून

 होटलों में खून चि‍ड़ि‍याघर में बुतखाने में खून

 बाग में खून, बाजार में खून वीराने में खून

 घर में खून बाजार में खून शफाखाने में खून

 मेरे मन का प्रश्‍न जुबॉं पर आ गया – माफ कीजि‍ये इंकलाब साहब ! इतना खून बहाकर आप कहना क्‍या चाहते हैं? वे गुर्राये – इंकलाब के लि‍ये खून जरूरी है। यह इंकलाबी नज्‍़म है भाई! और तालि‍यों की गड़गड़ाहट।

 इस तरह गोष्‍ठी खत्‍म हुई। अध्‍यक्ष व सचि‍व ने कहा – अच्‍छी सी समीक्षा छपनी चाहि‍ये। सुंदर रि‍पोर्टि‍न्‍ग आये तो-----

 मैं जो इतनी देर तक अपने सर्वांगों को दुखी कर रहा था, बोल उठा – सारी गोष्‍ठी की रि‍पोर्टि‍न्‍ग तीन वाक्‍यों में खत्‍म हो सकती है। वे बोले – कैसे? मैं जो अंदर तक भर गया था बोला – सारी की सारी कवि‍गोष्‍ठी सि‍र-फोडूँ और उबाऊ रही। कवि‍ता के नाम पर इस समि‍ति‍ में कलंक मौजूद हैं। लगता है सरदर्द  गोलि‍यों के होलसेल डीलरों के बीच बैठकर कवि‍ताई कलंक सुन रहा था मैं।

 उसके बाद उस समि‍ति‍ के बेवक्‍तों, ज्‍वलंतों इंकलाबि‍यों ने मुझे मार मार कर सड़क पर फेंक दि‍या। यह लेख अस्‍पताल से लि‍ख रहा हूँ। कवि‍ग्रस्‍त मेरा शहर कौन बचाये?   ‍    

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