मैं कॉलेज के दिनों में एक बार काफी परेशान था। वजह कुछ भी रहा हो सार यही था कि कभी-कभी आपके कर्मों का प्रतिफल उस तरह नहीं मिल पाता जैसी आप अपेक्षा करते हैं। आपको वह वैल्यू नहीं दी जाती जिसके आप हकदार हैं। मेरी माँ जो मेरी प्रथम शिक्षिका भी रही है और अभी तक शिक्षा देने के कार्य में सक्रिय है,उसने मेरे भाव को समझ लिया और मुझे एक छोटी सी कहानी सुनाई। कहानी कुछ इस प्रकार है – “सूर्यास्त के समय सूर्य ने लोगों से पूछा, मेरी अनुपस्थिति में मेरी जगह कौन कार्य करेगा? समस्त विश्व में सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। आखिर सूर्य का विकल्प कोई हो सकता है क्या जो उसकी जिम्मेद्दारी लेने को तैयार हो जाय? दुनिया शांत हो गयी। बिल्कुल निःशब्द ! तभी पीछे से एक आवाज़ आई …… मैं। मैं कार्य करूँगा आपकी जगह। मैं पूरा प्रयास करूँगा कि आपकी अनुपस्थिति में, मैं दुनिया को रोशनी दे सकूँ। दुनिया फ़िर अवाक् थी। देखा एक छोटा सा दीया चुनौती लेने को तैयार हो गया।
माँ ने कहा , ये तो एक छोटी सी कहानी है जिसके माध्यम से कई चीजें सीखने को मिलती है। संदर्भ यह है कि आपकी सोच और ताकत में चमक होनी चाहिए। बड़ा – छोटा से फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है कुछ लोग अपने स्तर से आपको छोटा समझते हों और इस कारण महत्व न देने का दिखावा भी करते हों। लेकिन आपको पता नहीं होगा कि ऐसे लोगों के लिए आप इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि आपके बदौलत ही इनकी चमक भी बनी होती है। चाहे ये चमक उन्हें आपकी बुराई या नुकसान पहुँचा कर ही क्यों न मिली हो? लेकिन आप डरो मत। ऐसे लोग जाने – अनजाने आपके ऊँचाई तक पहुँचने का मार्ग भी प्रशस्त कर देते हैं। आप दीया को ही देख लो। उसे नीचा दिखाने के लिए, उसे महत्वहीन साबित करने के लिए सैंकड़ों तरह के बल्ब और ट्यूब लाईटें संसार में आ गयी। लेकिन क्या इससे दीया का महत्व कम हुआ? नहीं हुआ। आज भी जब शाम होती है तो घर की औरतें ईश्वर के समक्ष सबसे पहले दीया ही जलाती है उसके बाद ही अन्य लाईटों को जलाया जाता है। हम दीपावली के आने का इंतजार करते हैं । दीया से घर की खुबसूरती बढ़ाते हैं। दीया का गुण क्या है पता होगा आपको। जहाँ एक ओर , अन्य कृत्रिम लाईटें कीड़े – मकोड़ों को आकर्षित कर आपको असहज कर देते हैं वहीं दीया बड़ी आसानी से इन कीड़ों का संहार कर देता है। और तो और दीया को ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है। “
सच में माँ ने जिस तरह से मुझे समझाया मेरी आँखें खुल गई। मुझे माँ ने एक गुरु की तरह मेरा मार्गदर्शन किया। मैं कितना अंधेरे में था लेकिन एक गुरु के 5 मिनट के ज्ञान ने मेरी आँखें खोल दी।
गुरु सिर्फ भौतिक शिक्षा नहीं देता है, वह आध्यात्मिक शिक्षा भी देता है। गुरु सिर्फ अपनी जानकारी विद्यार्थी को नहीं देता है बल्कि गुरु अपने मौन को, अपने शून्य को, अपनी समाधि को, अपनी भगवत्ता को शिष्य में हस्तांतरित करने की स्थिति का निर्माण करता है। हमारे शास्त्रों में जिन्हें गुरु कहा है वे जागृत पुरुष थे, चेतना को उपलब्ध, सत्य को पाने वाले। गुरु सत्य का अनुभव कर लेता है। वह शरीर में होता है, लेकिन शरीर व मन के पार चेतना के अनुभव में लीन रहता है। वह प्रकाश है, वह शून्य है, वह मौन है, वह जन्म, मृत्यु के पार अमृत्व को उपलब्ध बुद्ध है।
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते । अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥
‘गु’कार अर्थात अंधकार, और ‘रु’कार अर्थात तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।
निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते । गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥
जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं।
गुरू की महिमा इतनी है कि चंद लाइनों में उनका गुणगान नहीं किया जा सकता है। मैं डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का आभारी हूँ जिन्होंने एक गुरू की तरह देश का मार्गदर्शन किया। उनके जन्मदिन के अवसर पर डॉक्टर राधाकृष्णन को शत् शत् नमन और भावभीनी श्रद्धाञ्जलि। साथ ही सभी पाठकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
………. विवेक सिन्हा………
स्वतंत्र लेखक एवं विचारक