– बिलासपुर से सत्यप्रकाश पांडेय
गिद्ध एक ऐसा बदसूरत पक्षी है जिसकी खानपान की आदतें पारिस्थितिकी तंत्र या ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी हैं। हालांकि इसके लिए उसे श्रेय शायद ही दिया जाता हो। बिलासपुर में स्नातक की शिक्षा ले रही हर्षि ठाकुर पक्षियों के प्रति विशेष लगाव रखती हैं, अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस पर गिद्धों के बचाव और उनके संरक्षण की अपील को उन्होंने अपनी पीठ पर पेंटिंग के माध्यम से समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है। हर्षि ठाकुर वैसे तो गिद्धों के विषय में बहुत विस्तार से नहीं जानती लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञान है कि ‘गिद्ध पर्यावरण स्वच्छता’ का सबसे करीबी मित्र है। वे कहती हैं कि गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। ये मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर खाते हैं और इस प्रकार मिट्टी में खनिजों की वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं । इसके अलावा, मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते हैं। वे ये भी मानती हैं कि गिद्धों की अनुपस्थिति में चूहे और आवारा कुत्तों जैसे पशुओं द्वारा रेबीज जैसी बीमारी के प्रसार को बढ़ाने की संभावना बढ़ जाएगी।
ये तस्वीर आज दिन विशेष के लिए भी ख़ास मायने रखती है, प्रत्येक वर्ष सितंबर महीने का पहला शनिवार अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में वहां के लुप्तप्राय के पक्षी को बचने के लिए वन्यजीव ट्रस्ट और इंग्लैंड में हॉक कंजर्वेंसी ट्रस्ट द्वारा पक्षियों के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे गिद्ध जागरूकता दिवस से विकसित हुआ है, जिन्होंने एक साथ काम करने और एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में पहल का विस्तार करने का निर्णय लिया।
पर्यावरण को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला गिद्ध पिछले कुछ समय से जनसंख्या में गिरावट का सामना कर रहा है। पिछले 15 वर्षों में, देश की गिद्ध आबादी में 99% की गिरावट आई है। वर्तमान में भारत में लगभग 100,000 गिद्ध बचे हैं, जबकि 1980 के दशक में इनकी संख्या 4 अरब के करीब थी। इनकी जनसंख्या में गिरावट के पीछे मानव की मृत्यु और भोजन की अनुपलब्धता प्रमुख कारण है। गिद्ध की कुछ संरक्षित प्रजातियों को भी अब विलुप्त होने का सामना करना पड़ रहा है। ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं, उससे उनके शरीर में ज़हर पहुंच रहा है। कुछ लोग मानते हैं कि जानवरों को दी जाने वाली दवाओं के कारण ऐसा हो रहा है, जबकि दूसरे लोग मानते हैं कि नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे शिकार के कारण इनकी संख्या घट रही है।
गिद्ध सबसे ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी है। इसकी सबसे ऊंची उड़ान को रूपेल्स वेंचर ने 1973 में आइवरी कोस्ट में 37,000 फीट की ऊंचाई पर रिकॉर्ड किया था, जब इसने एक हवाई जहाज को प्रभावित किया था। ये ऊंचाई एवरेस्ट (29,029 फीट) से काफ़ी अधिक है और इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी से ज़्यादातर दूसरे पक्षी मर जाते हैं। गिद्ध अलग–अलग प्रजातियों के होते हैं और औसतन भारत में इनके सबसे देशी प्रतिनिधियों का वजन 3.5 – 7.5 किलोग्राम के बीच होता है, लंबाई 75 – 93 सेमी और पंखों का फैलाव 6.3 – 8.5 फीट को होता है। भारत में पाए जाने वाले गिद्ध 7,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और एक बार में 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी बहुत आसानी से तय कर सकते हैं। भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से चार विलुप्तप्राय की सूची में शामिल हैं।
थॉमसेट बताते हैं, “इसके बाद गिद्ध को लेकर हुए अध्ययनों से उनके हीमोग्लोबिन और ह्दय की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता चला, जिनके चलते वो असाधारण वातावरण में भी सांस ले सकते हैं.” गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाक़े पर नज़र डालने के लिए अक्सर ऊंची उड़ान भरते हैं।
छत्तीसगढ़ में भी गिद्ध संरक्षण की दिशा में काम होने की सरकारी ख़बरें आती रहीं हैं लेकिन जमीनी हकीकत और ठोस तथ्यात्मक आंकड़े अब तक सामने नहीं आ सके हैं। राज्य के मुंगेली जिले में ग्राम औरापानी में गिद्धों की मौजूदगी के बाद वन विभाग ने उनके संरक्षण की दिशा में काम शुरू किया जो सरकारी आलमारियों में कहीं दम तोड़ चुका होगा। खैर, गिद्ध के बारे में हम चाहें जैसी भी राय रखते हों, लेकिन उनके बारे में एक बात तो साफ़ है कि वो ख़तरे में हैं।