कदम्बिनी और नंदन जैसी भारत की प्रतिष्ठित पत्रिका का बंद होना हिन्दी साहित्य जगत के लिये एक चिंतन और चिंता का विषय है। ये केवल आम पत्रिका का नहीं बल्कि इससे कई लोगों की बचपन की यादें जुड़ी है। इस पत्रिका के साथ, जैसे मेरी खुद कुछ यादें स्कूल के दिनों की मैं पापा के डर साइंस के बुक में छुपाकर सबकी लिखी कहानी और कविता पड़ता था , और कई बार तो जब पापा को ये बात पता चल जाती थी मेरी बहन के द्वारा, तो कई बार पीटा भी हूँ पापा के हाथों से लेकिन एक अजीब सा लगाव है इस पत्रिका से आज भी ,कभी भी कही पर ये पत्रिका दिख जाती तो समझो चेहरे में रौनक के साथ बचपन की खट्टी- मीठी वो यादें ताजा हो जाती है। एक समय सभी लेख़क और कवियों की कहानी छुप-छुप के पड़ता था मुझे उस समय ये बात का बिल्कुल अंदाजा भी नही था और न ही मैं कभी सपने में सोचा था की मैं भी कभी कदम्बिनी क्लब हैदराबाद में सबके सामने अपनी लिखी कविता पढ़ने का मौका मिलेगा जो कि आज मैं खुद की लिखी कविता पढ़ता हूँ लेकिन कुछ दिनों से सुनने में आया कि ये पत्रिका बंद हो रही है या बंद कर दी गई है वाकई मुझे लगता है ये बड़ो के साथ -साथ जितने भी साहित्यकार या कवि है पूरे भारत में सभी के लिए दुखत समाचार होगा।
मैं सरकार से या पत्रिका मालिक से अनुरोध करूँगा कम से कम ये दो पत्रिका सुचारू रूप से चलने दिया जाये ये केवल आम पत्रिका ही नहीं अपितु यादें है कई लोगों बचपन की।
इंजी. रमाकान्त श्रीवास
कोरबा