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हिंदी बने भारत के माथे की बिंदी।

ByMedia Session

Sep 13, 2020

संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी एवं लिपि देवनागरी है।
संविधान निर्माताओं ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ हिंदी को राजभाषा के रूप में चुना क्योंकि यह भारत के अधिकांश भागों में अधिकतर लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा थी।
खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा है। गांधीजी हिंदी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे।उन्होंने यह घोषणा भी की थी कि देश की अखंडता के लिए संपूर्ण भारत की यदि कोई राष्ट्रभाषा हो सकती है तो वह हिंदी ही है। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए पूरे देश भर में आंदोलन चलाया था।
यह हिंदी भाषा ही थी जिसने राष्ट्रीय स्वाभिमान की चेतना को घर घर तक पहुंचाया था और स्वदेश प्रेम जगाया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदी के लिए राष्ट्रभाषा का शब्द प्रचलित हो गया।
यह एक बेहद सुखद आंकड़ा है कि आज पूरे विश्व भर में हिंदी जानने और बोलने वालों की तादाद लगभग 65 करोड़ के आसपास है। आज हिंदी विश्व के तकरीबन 150 देशों में बोली समझी जाती है भले ही वहां एक हजार लोग ही हिंदी क्यों ना बोलते हों। इतना ही नहीं दुनिया भर के 170 विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा की पढ़ाई की जाती है।
इनसब सुखद आंकड़ों के बावजूद भी आज तक भारतवासी हिंदी को अपने माथे की बिंदी नहीं बना पाए हैं। और ना ही इस बिंदी को अपनी गर्वीली पहचान के तौर पर माथे पर बिठा पाएं हैं। आज देश में 95% से अधिक काम अंग्रेजी में होते हैं। सिर्फ शहरों में ही नहीं मसलन गांवों में भी अधिकतर कार्य जैसे बीज एवं खाद लेने की जानकारी, बैंकों से ऋण की जानकारी इत्यादि शब्द अंग्रेजी में ही संपन्न किए जा रहे हैैं।
हम हिंदुस्तानी तो हैं लेकिन खुद हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। इसके कई कारण हैं जैसे हम खुद को भले ही हिंदी भाषी कहें लेकिन अपने बच्चों को आज भी ‘ए’ फॉर ‘एप्पल’ का ही सीख देते हैं। बच्चा जब छोटा होता है तो हम बच्चों को हर चीज हिंदी के बजाय अंग्रेजी में सिखाना पसंद करते हैं। बच्चे का एडमिशन अंग्रेजी स्कूल में करवाते हैं जहां उन्हें हिंदी बोलने पर सजा दी जाती है। उन्हें सारे खेल और वीडियो गेम्स के नाम अंग्रेजी में यहां तक की दोस्तों से अंग्रेजी में बातें करना, यह सारी आदतें हैं उन्हें बचपन से ही सीखा दी जाती है।
इन्हीं वजहों से हमारे बच्चे हिंदी भाषा के प्रति समुचित लगाव और आकर्षण महसूस नहीं कर पाते और उन्हें हिंदी से डर लगने लगता है।
किसी दूसरी भाषा का ज्ञान होना गलत बात नहीं है लेकिन भारतीय होने के नाते हमें अपनी राजभाषा हिंदी को पूरी तरह से बोलनी, पढ़नी और समझ में आनी चाहिए।
क्योंकि डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी कहा है जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य पर गौरव का अनुभव नहीं होता हो वह देश का भी उन्नति नहीं कर सकता।
लेकिन हमें अपने घर में ही बेगानी होती जा रही हिंदी के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए अपने बच्चों को हिंदी के महत्व को बतलाना होगा। उन्हें बचपन से हिंदी भाषा बोलने और सीखने पर जोर देना होगा, खेल-खेल में भी बच्चों को हिंदी सिखाना होगा- जैसे शब्दों की अंत्याक्षरी, इसके अलावा पेपर में कॉलम बनाकर जानवर, वस्तु, जगह इत्यादि के नाम भरने एवं शुद्ध शुद्ध लिखने, सिखाने की आदत विकसित करनी होगी। इसके अलावा बच्चों में रचनात्मक लेख की आदत डाल सकते हैं जैसे उन्हें अपनी उम्र के हिसाब से 200-250 शब्दों का पैराग्राफ लिखने, किसी विषय वस्तु पर निबंध लिखने के लिए जैसे उनका पसंदीदा कार्टून, पसंदीदा खेल, सबसे प्यारा दोस्त इत्यादि विषय पर लिखने की आदत डालना होगा।
लिखने के दौरान उन्हें सही व गलत मात्राओं के बारे में बताने से भी उनमें हिंदी के प्रति रुचि बढ़ेगी।
हो सके तो अपने बच्चों को हर कठिन शब्द का हिंदी अनुवाद जरूर बताना चाहिए। इसके अलावा आजकल कई सारे ऐप्स है जो हिंदी सिखाने में काफी मददगार साबित हो रहे हैं जैसे लर्न फ्री हिंदी ऐप इत्यादि।
सबसे जरूरी बात अपने बच्चों को सोते वक्त हिंदी में कहानियां सुनाने चाहिए, क्योंकि कहानियां सुनना हर बच्चों को पसंद होता है। ऐसे में उन्हें रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, हितोपदेश इत्यादि की कहानियां सुना कर उन्हें हिंदी के प्रति रुचि उत्पन्न किया जा सकता है।
क्योंकि इन माध्यम से बच्चों का बौद्धिक विकास होगा और बच्चे कठिन विषयों को भी आसानी से समझ सकेंगे।
नई शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा को बुनियादी शिक्षा के तौर पर अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना एक सुखद अनुभव सा लगता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की
भाषा के रूप में हिंदी ना सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन के मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कार का भी परिचायक है।

रोहित राज
गिरिडीह (झारखंड)

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