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कोरोना काल अविराम संघर्षी

अमित नवरंग लाल:
जीवटता का प्रतीक!!


– सुरेशचंद्र रोहरा

जब चारों ओर अंधेरा हो, घनघोर तमस हो तो एक दिया अंधकार पर भारी पड़ जाता है। एक नन्हा सा दीपक अंधेरे को दूर भगा देता है, यह सच हमारी धरोहर है। हम जानते हैं जब जब अंधेरा घिरता है तो हमें रोशनी की दरकार होती है क्योंकि यही रोशनी अंधेरे को परास्त कर सकती है और चहुं ओर हंसी ख़ुशी प्रसारित कर सकती है।। अंधेरा एक प्रतीक है दीया और दीपक एक ऐसा सच जो युगों युगों से अंधकार को भगाता पछाडता चला रहा है। आज के इस भयावह कोरोना कोविड-19 संक्रमण काल में चारों तरफ अंधेरा व्याप्त है, कहीं कोई रोशनी दिखाई नहीं देती। ऐसे में हमें एक माटी का “दिया” दिखाई दिया एक “दीपक” दिखाई दिया जिसकी रोशनी से आज कोरबा अंचल दमक रहा है।

एक दीपक ने वह कमाल कर दिखाया, जिसके आगे सभी हम नतमस्तक हैं। यह दीपक है- अमित नवरंगलाल….! जिसने कोरोना के इस भयावह समय काल में आशा की एक ज्योति प्रज्ज्वलित की है। और एक संदेश प्रसारित किया है कि अगर कोई एक आदमी उठ खड़ा होता है तो वह माहौल वातावरण को बदल सकता है। कोरोना के इस समय को हम जानते हैं कि कितना त्रासदी पूर्ण है यह एक ऐसा समय है जब कोई किसी का नहीं है, भाई भाई के लिए बेगाना हो चुका है और परिजन अपने ही लोगों को मुंह फेर कर उसे देखना नहीं चाहते।शासन प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद यह एक ऐसा समय है जो भय का संचार कर रहा है। हर आदमी भय ग्रस्त है, डरा हुआ है और अपनी जान बचा लेना चाहता है। हर आदमी चाहता है कि मैं अपनी जान बचा लूं, ऐसे विकराल समय में अमित नवरंग लाल ने जिस तरीके से सेवा भावना कोअपना संबल बनाया वह लोगों को आवाक , अचंभित कर रहा है। सचमुच देखा जाए तो इस खतरनाक समय में जब लोग भयभीत हैं लोग देख रहे हैं कि किस तरीके से हमारे आसपास मौतें हो रही है मौत मंडला रही है चिकित्सक अपना दायित्व भी भूल चुके हैं, सामाजिक कार्यकर्ता संस्थान छुप गए हैं और लोगों की जेबें खाली हो रही है ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है, हास्पिटल में बेड नहीं है, हॉस्पिटल में जगह नहीं है, चौराहे पर मर रहे हैं, ऐसे में अमित नवरंग लाल ने एक रोशनी प्रसारित करने का महान काम किया है।
यह सर्वविदित है कि आज एक भयावह समय चल रहा है जिसमें कोई किसी का नहीं है हर आदमी भाग रहा है अपनी जान बचा रहा है अपने आपको अपने परिवार को बचा लेना चाहता है ऐसे दुश्वारी भरे समय में जब कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि सामने नहीं है, कोई आंसू पोंछने वाला नहीं है तब इस संक्रमण के समय में गली गली में सेनेटाइजराइज करना लोगों को मदद पहुंचाना लोगों के लिए मदद का कंधा बन जाना एक मिसाल है। क्योंकि आज कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता आज लोग की जान के लाले पड़े हुए हैं इतना खतरनाक समय की जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था ऐसा एक समय जो कभी सोचा ही नहीं गया था। जब सरकार लोगों को यह बता रही है कि तुम अपनी जान बचा लो! इसी में समझदारी है आज अखबार से लेकर सोशल मीडिया और राष्ट्रीय मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया इस बात का ढोल पीट रही है कि हे मनुष्य! बच सकता है तो बच जा, तू किसी का मुंह मत देख! खुद बच गया तो समझ लेना सारी दुनिया बच गई!!

हमें ऐसे विपरीत संदेश के समय में अमित नवरंगलाल ने अपनी जान को हथेली पर रखकर के कोरोना संक्रमण से लड़ने का जो जज्बा दिखाया है, वह अनोखा है, अनुपम है और उसकी मिसाल हमें दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप ऐसा कर सकते हैं? शायद नहीं इसीलिए अमित नवरंग लाल का आज इस समय में महत्वपूर्ण योगदान रेखांकित है। और अगर हम अपने आसपास के ऐसे नायक और महानायकों का सम्मान करते हैं तो यह मानवता का सम्मान होगा। यही कारण है कि जो प्यार, स्नेह और पैसा अमित नवरंग लाल के लिए लोगों ने लुटाया है उसकी नजीर नहीं मिलेगी।

कोरोना काल की रौशनी

अमित नवरंग लाल ने गांव गलियों में पहुंचकर के लोगों की मदद की है। वैसे अपने आसपास के लोगों के ही नहीं उन गरीब तबके के लोगों की भी मददगार बन कर के सामने आए हैं जिनकी मदद क रने के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा था। जब हॉस्पिटल के दरवाजे बंद हो चुके थे जब शासन कुंभकर्णी निंद्रा में सो रहा था जब चारों तरफ रास्ते बंद हो चुके थे ऐसे में जिस जिस ने भी अमित नवरंग लाल को पुकारा तो उनकी टीम एक्टिव ने उसकी मदद की चाहे वह उसे एंबुलेंस में ले जाकर के हॉस्पिटल में पहुंचाना हो या फिर उन्हें ऑक्सीजन उपलब्ध कराना हो या फिर चाहे अंधेरे कमरों में उन्हें स्वास्थ्य के लिए उजाले की ओर ले जाने का सबब हो। यह सब काम उन्होंने जिस निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया है वैसा दुर्लभ है। वैसी कोई अन्य नजीर दिखाई नहीं देती यह सब काम जो शासन का था जो चिकित्सकों का था जो समाज सेवकों का था जो अपने आप को झंडा बरदार बताते हैं उनका यह काम था। मगर वह सब जो आम आदमी का दोहन करके सत्ता के शिखर पर पहुंच चुके हैं और रसमलाई खा रहे हैं ऐसे लोग आंख बंद करके अपने घरों में घुस गए तब जब किसी व्यक्ति ने अमित नवरंग लाल को पुकारा तो वहां उपस्थित था यह अपने आप में महत्वपूर्ण और सोचने वाली बात है कि ऐसा अदम्य साहस, ऐसा जज्बा देखने को नहीं मिलता और यह सब कुछ हुआ है दुस्साहस के साथ, हिम्मत के साथ आगे बढ़ने के जज्बे के कारण हुआ है। जिसे सलाम किया जाना जरूरी है। अगर आज हम अपने आसपास के ऐसे महानायकों को याद नहीं करेंगे तो हम से बड़ा कृतध्न कोई नहीं हो सकता। शायद यही कारण है कि जिस तरीके से अमित नवरंग लाल को लोगों का स्नेह मिला है वैसा तो बड़े-बड़े स्तंभ, नामचीन नेताओं को भी नहीं मिला क्योंकि जनता ने देखा है कि किस तरीके से अपनी जान हथेली पर रखकर के एक साधारण सा आदमी लोगों की मदद करने के लिए सामने आता है। यह एक अविस्मरणीय दृश्य था जिसे कोरबा की जनता ने देखा और पाया कि यह आदमी इस जज्बे को लेकर के निकल पड़ा है उसे नमन तो करना बनता ही है, उसे सलाम तो करते बनता ही है। वह हृदय से नमन का अधिकारी है, वह इसलिए भी जरूरी है कि जैसा महत्वपूर्ण मानवता को उत्कर्ष देने का काम किया गया है वैसा कोई नहीं कर सका। शासन प्रशासन और समाज के सेवक दीमक! अपना मुंह छुपा कर घर में घुसकर छुप गए हैं मगर अमित नवरंग लाल ने यह ठान लिया कि मुझे लोगों की सेवा करनी है लोगों के आंसू पोछने है लोगों की मदद करनी है। चाहे मैं रहूं या ना रहूं।

यह उदात्त भावना किसी को भी महान बनाती है, अमर बनाती है। कहा भी गया है कि आप भले ही छोटी जिंदगी जीएं, लेकिन लोगों की मदद करें। आज के इस स्वार्थ के समय में अमित नवरंगलाल ने दिखा दिया है कि किस तरीके से लोगों की मदद की जानी चाहिए बड़ी-बड़ी संस्थाएं जो सिर्फ अखबारों में अपने चेहरे साया कराने में यकीन करती हैं वह पीछे रह गई और एक साधारण आदमी जिसके समाजिक सरोकार का कोई रिकॉर्ड नहीं है वह आदमी सामाजिक सेवा में ऐसे झंडे गाड़ देगा इसकी कल्पना शायद किसी ने भी नहीं की होगी। आज इस आलेख में हम उन सच्चाई को रखना चाहते हैं ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके और लोग यह समझ सके कि हम भी ऐसा कर सकते हैं और एक समय में जब चारों ओर उजाला फैल जाएगा रोशनी फैल जाएगी तब आज के अंधेरे की इस वक्त को इतिहास को लोग याद रखेंगे कि कोई एक शख्स ऐसा भी था जिसने अपनी जान को हथेली पर रखकर के सतत लोगों की मदद की थी।

एक्टिव टीम: दृश्य दर दृश्य

प्रथम घटनाक्रम-
एक व्यक्ति की मौत हो गई हो गयी कोरोनावायरस के कारण व्यक्ति की मृत्यु के पहले कोई परिजन उसके आसपास नहीं था! वस्तुत: आज का समय इतना कठिन है और चिकित्सा विज्ञान और सत्ता प्रतिष्ठान ने देश का माहौल कुछ ऐसा बना दिया है कि जब कोई अपना ही परिजन कोरोनावायरस से ग्रस्त होता है तो परिवार के लोग पीड़ित से दूर हो जाते हैं, स्वयं चिकित्सक कहते हैं कि दूर रहिए! और चिकित्सक भी क्या करें उन्हें भी तो डब्ल्यूएचओ का आदेश मिला हुआ है? ऐसे में कौन है जो सामने आएगा इस एक बड़े विराट प्रश्नचिन्ह को जवाब दिया अमित नवरा लाल ने अदम्य दुस्साहस से। उन्होंने यह संकल्प लिया कि हम ऐसे लोगों की मदद करेंगे जिनका कोई परिजन सामने नहीं आ रहा कोताही कर रहा है, भय ग्रस्त है ताकि एक संदेश प्रसारित हो मानवता अभी जिंदा है उस व्यक्ति को अमित नवरंग लाल स्वयं पहुंचकर हॉस्पिटल से बॉडी को लेकर के परिजनों के पास आते हैं परिजन भी संशय ग्रस्त हैं, भय उनके चेहरे पर अभी भी विद्यमान है और वह डरते हुए कहते हैं कि उनका अंतिम संस्कार भी आप कर दो !!अमित नवरंग लाल की टीम उस व्यक्ति के कोरबा जिला के ग्राम बरपाली के निकट पहुंच करके सामाजिक पद्धति के साथ संस्कार संपन्न कराती है। और मृतक का चेहरा दिखा कर के अंतिम निवेदन अर्पित करने के साथ व्यक्ति का संस्कार होता है

द्वितीय घटनाक्रम –
कोरोनावायरस से संक्रमित होकर एक महिला घर में मरणासन्न है एक परिजन का कौन अमित नवा लाल के पास आता है भैया मां की हालत ठीक नहीं हमें आपकी मदद की आवश्यकता है थोड़ी ही देर में अमित सुबह अपने साथ साथियों के साथ पहुंचते हैं और महिला को ले करके हॉस्पिटल पहुंचते हैं हॉस्पिटल में दाखिल कराने के बाद परिवार से रहते हैं और भी कोई किसी को मदद की आवश्यकता है तो उन्हें मुझे कॉल करने के लिए जरूर कहना।

तीसरी घटना-
एक व्यक्ति कोना से संक्रमित होकर घर में खांस रहा है उसकी हालत बिगड़ती चली जा रही है परिजन चिंतित है बार-बार फोन करने के बाद भी सरकार हॉस्पिटल से कोई मदद नहीं आती। सिर्फ आश्वासन… कहा जाता है शीघ्र आएंगे आ रहे हैं। इसी दरमियान एक परिजन अमित नवरंग लाल को कॉल करता है और एक एंबुलेंस थोड़ी ही देर में उनके घर के पास खड़ी होती है चार कार्यकर्ता पेशेंट को लेकर के हॉस्पिटल की ओर रवाना हो जाते हैं।

चतुर्थ घटनाक्रम –
एक शख्स कोरोनावायरस से परेशान हलाकान बिस्तर पर पड़ा हुआ है उसकी सांसे मानो थम रही है ऐसे में जब कोई अमित नवरंग लाल को फोन करता है बताता है कि ऑक्सीजन की कमी जान पड़ती है सांस ले नहीं पा रहे हैं तो अमित नवरंग लाल गैस सिलेंडर लेकर के उसके घर पहुंचते हैं और व्यक्ति को गैस उपलब्ध हो जाता है।

षष्ठम घटनाक्रम-
एक मरीज को ले करके जब रात को एक्टिव टीम हॉस्पिटल पहुंचती है तो वहां ना डॉक्टर है और ना ही अन्य स्टाफ व्यक्ति मरणासन्न है उसे इलाज चाहिए जब यह बात एक हुंकार बंद कर गूंजती है तो डॉक्टर और स्टॉप पुलिस को बुला लेता है और पुलिस को आना पड़ता है ।

एक शख्स को एंबुलेंस में लेकर के तेजी से अंधरी रात में एंबुलेंस आगे बढ़ रही है हॉस्पिटल के द्वार पर पहुंचती है एक निजी हॉस्पिटल का द्वार बंद है….

चौकीदार बताता है कि अभी डॉक्टर साहब नहीं है…. एक मरणासन्न व्यक्ति को आज और अभी इलाज की आवश्यकता है.,. जब अमित नवरंगलाल निवेदन करते है कि डॉक्टर को बुलाया जाए! तो साफ-साफ कह दिया जाता है कि डॉक्टर तो नहीं आ सकेंगे हां मरीज को भर्ती कर दिया जाता है। इसी दरमियान पुलिस को हास्पिटल से काल चली जाती है क्योंकि डॉक्टर की नींद में खलल पड़ गया था !

और फिर क्या हुआ यह अपने आप में एक इतिहास है अमित नवरंग लाल विनम्र शब्दों में कहते हैं हॉस्पिटल मैं अगर डॉक्टर इलाज नहीं करेंगे और मरीज मरणासन्न होंगे तो फिर हॉस्पिटल की दरकार ही क्यों है क्या यह कोई अपराध है कि हम या मांग करें कि आज हमें मिलना चाहिए… यह कुछ ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब देश के प्रधानमंत्री को आज अपने मन की बात में अवश्य देना चाहिए।

नर की सेवा , नारायण सेवा!

यह सच हमारे देश के इतिहास में कई दफा अंकित हुआ है जब जब संकट के समय में कोई व्यक्ति अपना सर्वस्व निछावर कल की सेवा की भावना में सामने आ खड़ा होता है तो लोग आंख बंद करो उसे अपना सब कुछ लुटा देते हैं। और वह व्यक्ति व्यक्ति नहीं रह कर समष्टि बन जाता है। अमित नवरंग लाल के साथ भी कुछ शायद ऐसा ही हुआ है लोगों ने आकर के स्वस्फूर्त सहयोग देना प्रारंभ कर दिया!

दरअसल, कोई शख्सियत अपनी जान हथेली पर ले कर के निकल पड़ती है कोई व्यक्ति जब अपना सर्वस्व मानवता के लिए अर्पित कर देता है तो लोग भी उसे वैसा ही स्नेह और सम्मान देते हैं।

ऐसा ही कुछ अमित नवरंग लाल की अप्रतिम टीम के साथ भी देखा जा रहा है एक तरफ जहां प्रतिकार विरोध के स्वर हैं तो दूसरी तरफ सम्मान और स्नेह के हाथ भी खड़े हुए हैं। एक अधिवक्ता जो शहर के नामचीन एडवोकेट माने जाते हैं अमित नवरंग लाल की टीम एक्टिव पर एक अदृश्य शिकंजा कसा जाने लगा तो वह सामने आ गए और उनके प्रत्यक्ष होते ही माहौल बदलने लगा और जो लोग समाज के सेवा के लिए उठे हाथों को कुचल देना चाहते थे भयभीत होकर पीछे हट गए।

यह एक ऐसा उदाहरण है जो बताता है कि आप चाहे कितना ही अच्छा काम करें लो, कुछ व्यक्ति … लोग उसे पसंद नहीं करते और चाहते हैं कि जो करें हम ही करें दूसरा कोई अच्छा काम कैसे कर सकता है ? वह नहीं समझते कि अगर हम नहीं कर पा रहे हैं तो उस शख्स को हम अपनी मदद कर दें और वह भी ऐसा ही बहुत लोग जो मन के पवित्र हैं जिनमें मानवता और सामाजिकता है वह एक हो कर के सामने आते चले गए और अमित नवरंगलाल को हर तरीके से मदद करने लगे।यही मदद एक शक्ति बन गई और ट्रांसपोर्ट नगर स्थित कार्यालय में प्रतिदिन जाने कितने लोगों का भोजन बनने लगा और लोगों तक पहुंचने लगा। यह भी एक ऐसा उदाहरण है अपने आप में अनुपम नजीर है। कोरोनावायरस से दुखी पीड़ित लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था मानो नारायण की सेवा ही तो है।

मगर रूकिए!

अंधेरा नहीं छटा है, एक दीपक बारने से क्या होता है आओ और भी बहुत सारे दीपक जलाने हैं कोरोनावायरस कोविड 19 के संकट काल में जब चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है तो बहुत सारे दीपक की आवश्यकता है आइए! हम भी एक दीपक बन जाए और रोशनी को रोशन करते हुए अपने जीवन को धन्य बनाने का प्रयास करें।
gandhishwar.rohra@gmail.com


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