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प्रखर चिंतक विक्रम चौरसिया की कलम से-तमाम कवायदों और योजनाओं के बावजूद देश में घोर लैंगिक असमानता क्यों व्याप्त है ?

ByMedia Session

Sep 1, 2020

हाल ही में वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2020 से हमें पता चलता है कि विकास के अनेक दावों के बावजूद भी हम महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने में बुरी तरह से विफल रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक दोस्तों 153 देशों की सूची में भारत 1 साल में 4 स्थान फिसलकर 112 वें स्थान पर पहुंच गया है। इन सबका सीधा सा कारण लगता है मुझे की आज भी लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करना पैसे का सही निवेश नहीं माना जाता है , जिसके चलते ही हमारे समाज में अशिक्षित और अपने हक से अनजान महिलाओं की अधिकता बनी रहती है।
दोस्त पूरी दुनिया जानती हैं कि भारत एक नारी गौरव गरिमा वाले देश के रूप में जाना जाता है । इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकता कि हमारी अध्यात्मिक मान्यताएं महिलाओं को एक देवी के रूप में मानते हैं। लेकिन आज सच्चाई देखे तो कहीं ना कहीं हम आज महिलाओं को एक मानव के रूप में पहचानने में भी विफल रह रहे हैं। इसी कारण से आज समाज में व्यापक पैमाने पर लैंगिक भेदभाव विद्यमान है , देखो ना यह विडंबना ही है कि तमाम तरह के विकास के दावों के बावजूद हम महिलाओं से होने वाले भेदभाव को खत्म नहीं कर पा रहे हैं।
वैसे पिछले दिनों ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस भेदभाव को खत्म करने लिए बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है , अब पैतृक संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का बराबर का अधिकार होगा। दोस्तो पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पिता के पैतृक की संपत्ति में बेटी का बेटे के बराबर हक है, थोड़ा सा भी कम नहीं। उसने कहा कि बेटी जन्म के साथ ही पिता की संपत्ति में बराबर का हकददार हो जाती है। देश की सर्वोच्च अदालत की तीन जजों की पीठ ने अब स्पष्ट कर दिया कि भले ही पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू होने से पहले हो गई हो, फिर भी बेटियों को माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा।
ऐतिहासिक तथ्यों को देखें मित्रों तो देश में 9 सितंबर, 2005 से हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू हुआ है। इसका मतलब है कि अगर पिता की मृत्यु 9 सितंबर, 2005 से पहले हो गई हो तो भी बेटियों को पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा। जस्टिस अरुण मिश्र की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। जस्टिस मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार देना ही होगा क्योंकि बेटी पूरी जिंदगी दिल के करीब रहती है। बेटी आजीवन हमवारिस ही रहेगी, भले ही पिता जिंदा हों या नहीं।’वैसे भी दोस्तों संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी के बराबरी की बात कही गई है किसी प्रकार से किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अगर हम महिलाओं के शैक्षिक अवसरों की उपलब्धता के मामले में दुनिया में भारत का स्थान देखे तो 112 वें स्थान पर आज है। देखा जाए तो आज भी 82 फीसद पुरुषों के मुकाबले 66 फीसद महिलाओं को इस आंकड़े के मुताबिक साक्षर बताया गया है। इस रिपोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि 2006 में पहली बार प्रकाशित आंकड़ों के मुकाबले आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के अवसरों में कमी आई है । इस मामले में अपने भारत को 149 में पायदान पर रखा गया है, आर्थिक क्षेत्र में अवसरों के मामले में भारत का प्रतिशत 35.4 है और महज 14.4 फीसद महिलाएं हैं सांसद तक पहुंची है। इस मामले में भी भारत का स्थान 122 वां है । वहीं दूसरी तरफ मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी केवल 23 फीसद है और इस मामले में विश्व में 69 वां स्थान है। वही देखे तो दुनिया के विभिन्न देशों में 25.2 फ़ीसदी महिलाएं संसद के निचले सदन का हिस्सा है, जबकि 21.2 फीसद महिलाएं मंत्री पद संभाल रही है ।
दोस्तों 1 शब्दों में बोले तो महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को ज्यादा अहमियत देना ही लैंगिक असमानता है। आप ही देखो ना
आज सामाजिक, राजनीति, आर्थिक ,शैक्षिक आदि स्तरो पर हम देखे तो हमें भेदभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सबसे अत्यधिक कारण समाज में महिलाओं के निम्न स्थिति होने के गरीबी और शिक्षा की कमी ही है।
महिलाएं घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण अपमान और भेदभाव से पीड़ित होती रहती है, इनके साथ भेदभाव ना केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव की जड़े काफी गहरी है ।
आप भी देखे होंगे जब आपके घर में दो जुड़वे बच्चे जन्म लेते हैं जिनमें एक लड़का और एक लड़की होती है , अक्सर तब देखने में आता है कि लड़के के लिए तो बहादुरी वाला खिलौना ला कर दिया जाता है वहीं दूसरी तरफ लड़की के लिए चूल्हा चौकी वाला और गुड़िया ला कर दिया जाता है, यहीं से भेदभाव शुरू हो जाता है दोस्तो ।
आज भी हमारे समाज में लड़की को बचपन से शिक्षित करना एक बुरा निवेश माना जाता है, क्योंकि यह धारणा बनी हुई हैं कि लड़की की शादी होगी और उसे दूसरे घर ही चले जाना है। इसलिए आज भी अभिभावकों को उसकी शिक्षा से ज्यादा उसकी शादी और उसमें होने वाले खर्च की फिक्र होती है । दोस्तों विश्व आर्थिक मंच के अनुसार इस असमानता को दूर करने के लिए जरूरी है कि समय के साथ उभरते नए क्षेत्रों जैसे कि क्लाउड कंप्यूटिंग इंजीनियरिंग ,डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए और नई पीढ़ी को इस से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। मेरे बात को याद रखना मित्रों आप की हर एक नारी किसी ना किसी का मां होती है चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता हो लेकिन किसी ना किसी का मां होती है, आप ही देखो ना एक नारी ही हमें 9 माह अपने कोख में रखकर इस धरती पर लाती है। एक नारी कभी मां कभी बहन तो कभी दोस्तो तो कभी पत्नी तो कभी दादी मां बहुत से रिश्ते में हमें बांधकर हमें प्यार ही प्यार देती हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है कि हर एक नारी में मां का ही स्वरूप देखे आप भी आज से मित्रों.

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