
बहुत समय पहले एक बहुत ही क्रूर असुरों का राजा था जिसका नाम गजमुख था. वह बहुत ही शक्तिशाली बनना चाहता था एवं धन भी अर्जित करना चाहता था. इतनाही नहीं गजमुख सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए उसने शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या की. उसकी घोर तपस्या देख भोलेनाथ प्रभावित हो गए तथा प्रसन्न हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान की फलस्वरूप वह बहुत शक्तिशाली बन गया. सबसे बड़ा वरदान जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता. कुछ समय पश्चात्, असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुरूपयोग भी करने लगा तथा देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा.गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे. थक हारकर, सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे. यह सब देख कर शिवजी नें गणेश को असुर गजमुख को यह सब रोकने के लिए भेजा.शुरुआत में गणेश जी ने गजमुख को प्यार से समझाने की कोशिश की किन्तु वह नहीं माना परिणामस्वरूप गणेश जी और गजमुख के बिच युद्ध हुआ और अंत में गणेश जी ने असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया. लेकिन तब भी वह नहीं माना. उस राक्षक नें स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा. जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के लिये मूषक में बदल दिया और उसे अपना वाहन बना लिया. बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और स्वयं को धन्य मानने लगा क्योंकि वह प्रथम पुज्यनिय, बुद्धि एवं करुणा के भगवान गणेश जी का वाहक था जो उसके लिये असुर बने रहने से कई गुना बेहतर कार्य और गौरव की बात थी.
वैष्णवी दुबे