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14 सितंबर 2020 हिन्दी दिवस विशेष-वैश्वीकरण और हिन्दी – डॉ. टी. महादेव राव सेवा निवृत्त वरिष्ठ प्रबन्धक -राजभाषा, एचपीसीएल, विशाखपटनम

ByMedia Session

Sep 15, 2020

भारत का उदात्त एवं प्राचीन दर्शन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ संपूर्ण विश्व को एक परिवार एक इकाई के रूप में देखने, समझने व जीने की प्रेरणा देता है। सब मिलकर रहें, और इस विश्व समाज को सह अस्तित्व के साथ शांतिमय रूप में जीएँ स्पष्टत: ही यह कल्याणकारी दर्शन समूची मानव जाति को सहज व स्वाभाविक रूप से पूरी दुनिया से जुड़ने जोड़ने का संदेश देता है। लेकिन जिस वैश्‍वीकरण जिसका नवीनतम घटनाक्रम विश्व व्यापार संगठन है, की अवधरण उक्त भावना से नितांत रूप से भिन्न है। अवधरण का किसी प्रकार की कल्याणकारी मानवीय भावना से कुछ लेना-देना नहीं है। विश्व व्यापार संगठन के इस दौर में अति भौतिकता और समृद्ध की इस अंधी दौड़ में आपस में सुख-दु:ख बांटने की उदात्त भावना का नितांत अभाव है। सोच इस पर केंद्रित और सीमित है कि हम अपने व्यापार में कैसे सफल हो सकते हैं अधिकाधिक लाभ कैसे कमा सकते हैं।
भूमंडलीकरण ने भौतिक जगत की दूरियों को मिटाया है। वैज्ञानिक उन्नति, औद्योगिक विकास, कंप्यूटर, फैक्स, इंटरनेट और ई-मेल के इस युग ने हमारे सोच-विचार और विकास के सारे मानदंड बदल दिए हैं। आज पिछड़ा हुआ वह नहीं है जिसके पास ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है बल्कि पिछड़ा हुआ वह है जिसके पास भले ही ज्ञान व संसाधनों का भंडार है परंतु उनके आधुनिकतम ढंग से उपयोग करने का अभाव है।
वैश्वीकरण को लेकर भाषा के परिप्रेक्ष्य में भी यही बात है। आज वह भाषा सबसे समृद्ध भाषा नहीं है जिसका अपूर्व एवं उल्लेखनीय इतिहास है, साहित्य है और संस्कृति की उज्जवल परंपरा है बल्कि वह भाषा समृद्ध है जो वर्तमान परिवेश में अधि‍क अनुकूल और उपयोग में लायी जा रही है, भले ही इसके पीछे उसके विभिन्न राजनीतिक व अन्य समीकरण हों।
विश्व व्यापार संगठन के इस युग में सभ्यता और संस्कृति की उज्जवल परंपरा की और प्राचीनतम भाषा संस्कृत विरासत वाली विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजभाषा हिंदी का क्या अर्थ है? विश्व व्यापार संगठन की प्रक्रिया भूमंडलीकरण से क्या हिंदी का दुनिया में अधिकाधिक प्रसार होगा? क्या देश-विदेश में यह विज्ञान की भाषा बनेगी? क्या यह विश्व व्यापार संगठन में व्यवहृत अन्य भाषाओं की तरह ही समादृत होगी?
हिंदी भाषा का वैश्‍वीकरण की दृष्टि से विचार करने के लिए भारत का विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से तुलनात्मक अध्‍ययन करना समीचीन होगा। आज भारत विश्व में कॉटन तथा कॉटन यार्न का उत्पादन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत की समृद्ध वस्त्र विरासत, विस्तृत दस्तकारी और पारंपरिक फैब्रिक्स तथा डिजाइन की समृद्ध, भारतीय फैशन उद्योग द्वारा प्रदर्शित की गई जिसने अपनी अमिट छाप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छोड़ी है।
भारत को देश में ही जिनेरिक औषधियों तथा टीकों की व्यापक रूप में उपलब्‍धता के कारण अपेक्षाकृत कम लागत वाली स्वास्थ्य प्रणाली का लाभ प्राप्त है। यह देश विश्व में, विश्वस्तरीय और लागत किफायती डॉक्टरी इलाज के लिए तेजी से एक पसंदीदा गंतव्य बन रहा है। भारत, मात्रा की दृष्टि से चौथे और मूल्य की दृष्टि से तेरहवें वैश्विक स्थान के साथ विश्व में औषधियों के सबसे बड़े उत्पादक देश के रूप में उभरा है। आज भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों के पास 48,000 से अधिक शाखाओं का देशव्यापी नेटवर्क है और कुल बैंकिंग कारोबार में इनका हिस्सा 80 से भी अधिक है।
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। इसका सकल देशी उत्पाद में लगभग 25 का तथा कुल निर्यात में लगभग 12 का योगदान है। आज विशाल कृषि क्षेत्र और दूध, काजू, नारियल, आम तथा केले का सबसे बड़ा उत्पाद और फलों एवं सब्जियों, चावल गेहूँ, मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के कारण भारतीय कृषि की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्रा में अग्रगण्य होने की प्रबल संभावना है।
भारत में पेट्रोलियम क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण कारक है। देश में 18 तेल शोधक कारखाने हैं जिसमें से जामनगर में 27 बिलियन टन की रिलाएंस रिफाइनरी का भारत की तेल शोधन क्षमता में 24 हिस्सा है। यह विश्व की सबसे बड़ी ग्रास रूट रिफाइनरी है।आज भारत विश्व में सीमेंट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।भारत विश्व में इस्पात का आठवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है।सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में यह सर्वविदित तथ्य है कि भारत में कुशल ज्ञान कार्मिकों के एक प्रचुर उच्च गुणवत्ता और लागत किफायती पूल की उपलब्‍धता है।
उक्त सभी तथ्य इस ओर इंगित करते हैं कि भारत विश्व में एक आर्थिक शक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है। वैश्‍वीकरण के इस चुनौती भरे युग में विज्ञापनों के माधयम से अपने-अपने उत्पादों को बेचने की जबर्दस्त होड़ लगी है। जहाँ एक ओर भारत की अनेक क्षेत्रों में निर्यात की भारी संभावनाएं निहित है वहीं दूसरी ओर इसका उपभोक्ता बाजार भी बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। बहुदेशीय कंपनियों को इस विशाल देश में अपने उत्पादों के बेचने की प्रबल संभावनाएं हैं। इन निहित संभावनाओं के चलते अब इन बहुदेशीय कंपनियों को भारतीया भाषाओं में भले ही कोई लगाव न हो, तो भी बाजार की शक्ति द्वारा इन बहुदेशीय कंपनियों का भविष्य इन भाषाओं पर टिका है। ऐसे में वे अपने विज्ञापन हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में देकर कामयाबी हासिल कर रही हैं। क्योंकि विश्व व्यापार में अपना व्यापार करने वाली ये बहुदेशीय कंपनियाँ यह भी बखूबी जानती हैं कि भारत में उपभोक्ता बाजार महानगरों और शहरी आबादी से निकल कर छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण अंचलों में भी फैलता जा रहा है और इन विज्ञापनों में, इसी अनुपात में भारतीय भाषाओं का महत्व भी बढ़ता जा रहा है।
वैश्‍वीकरण से ‘विज्ञापनी हिंदी’ का विकास और संवर्धन हो रहा है। भारत की 100 करोड़ की जनसंख्या में 18 करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा हिंदी है। 30 करोड़ लोगों को इसका कार्यसाधक ज्ञान है। 22 करोड़ लोग ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में हिंदी भाषा के संपर्क में आते हैं। इस प्रकार 100 करोड़ की आबादी में से 70 करोड़ लोग एक भाषा के व्यवहार से जुड़े हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि भारत में इस समय 30 करोड़ का एक मध्‍यम वर्गीय उपभोक्ता बाजार सहज रूप से विकसित हो चुका है और इस वर्ग तक पहुँचने के लिए हिंदी और भारतीय भाषाएं विशेष कारगर माध्‍यम बन रही है।
वैश्‍वीकरण के इस दौर में वैश्विक धरातल पर आर्थिक और प्रौद्योगिकी में उन्नति का विशेष महत्व है। आज जब भारत विश्व में एक आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है तो ऐसे में आर्थिक उत्थान का सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रौद्योगिक विकास ही है। वर्तमान परिवेश में एक आर्थिक उत्थान का सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रौद्योगिक विकास ही है। वर्तमान परिवेश में एक आर्थिक दृष्टि से विकसित होने के लिए भारत को गतिशील सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों की महती आवश्यकता है। अब तक भारत एक सांस्कृतिक व आध्‍यात्मिक तेवर वाला सामाजिक ढांचे में विकसित होता देश रहा है। वस्तुत: किसी देश का विकास उसकी आर्थिक प्रगति पर निर्भर करेगा और आर्थिक प्रगति विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित होती है तो ऐसी स्थिति में भारत के लिए यह और भी जरूरी है कि वह व्यापक स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति करे। निश्चय ही किसी भी देश में सामाजिक जागृति और आर्थिक परिवर्तन किसी भी विदेशी माध्‍यम से नहीं किया जा सकता।
जहाँ तक हिंदी भाषा या रचनात्मक साहित्य की बात है, वह गुणवत्ता एवं मात्रा की दृष्टि से विश्व स्तरीय और समृद्ध है किंतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में इन सभी भारतीय भाषाओं की उपलब्धि बहुत उल्लेखनीय नहीं कही जा सकती। बावजूद इसके कि भारत सरकार तथा तकनीकी शबदावली आयोग ने लगभग 8 लाख शब्दों को पारिभाषिक शब्दों के रूप में जुटाया है। यह दुर्भाग्य ही है कि भारत को अपनी इतनी अधिक संख्या में तथा अनेक दृष्टि से समृद्ध भाषाओं के वरदान का कोई उल्लेखनीय लाभ नहीं मिला है। आज वस्तुस्थिति यह है कि समस्य दर्शनों, शास्त्रों और अनुशासनों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सर्वोपरि स्थान है। तेजी से बदलते हुए संसार के सामाजिक और सांस्कृति‍क स्वरूप तथा परस्पर आदान प्रदान के पफलस्वरूप कापफी गहराई तक प्रभावित हो रही भारतीय संस्कृति के समस्त तत्वों की अभिव्‍यक्ति हेतु हिंदी भाषा में विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित विषयों की अभिव्यक्ति आज अनिवार्य हो गयी है।
यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार संप्रति विश्व के लगभग 137 देशों में हिंदी भाषा विद्यमान है। हिंदी भाषियों की कुल संख्या अनुमानत: सौ करोड़ है।
भारत के प्रतिवेशी राष्ट्रों यथा नेपाल, चीन, सिंगापुर, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, तिब्बत, भूटान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव आदि ऐसे देश हैं, जिनमें से अनेक बृहतर भारत के अंग थे। यहाँ हिंदी भाषी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी निवास कर रहे हैं। नेपाल की भाषाएं हिंदी की विभाषाएँ ही है। बर्मा और भूटान की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो उर्दू और बंगला प्रचलित है उन्हें यदि देवनागरी में लिख दिया जाये तो वे हिंदी से भिन्न प्रतीत नहीं होगी। जावा, सुमात्रा और इंडोनेशिया में जो उर्दू बोली जाती है, उसको देवनागरी में लिख दिया जाय तो वह हिंदी ही है। दुबई की अधिकांश जनता ने केवल हिंदी समझती है अपितु बोलती भी है।
भारत मूल के अप्रवासी भारतवंशी बहुल राष्ट्र जिन्हें भारत ‘उप महाद्वीप’ कहा जा सकता है। इनमें प्रमुख है मॉरिशश, सूरीनाम, फीजी, त्रिनिदाद, गयाना और दक्षिण अफ्रिका। इन देशों में लगभग डेढ़ सौ वर्षो से हिंदी विद्यमान है। भाषा और संस्कृति की दृष्टि से ये देश एक लघु भारत ही हैं। इन देशों में पर्याप्त मात्रा में रचनात्मक साहित्य का सृजन हो रहा है। यहाँ के क्षेत्रीय हिंदी भाषा रचनाकारों ने हिंदी साहित्य का संर्वधन किया है। इस दृष्टि से इन देशों में हिंदी के राजभाषायी स्वरूप के विकसित होने की अपार संभावनाएं निहित हैं।
तीसरा वर्ग, समुन्‍नत राष्ट्रों के हिंदी प्रवासी संप्रति हिंदी भाषा समाज यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के विभिन्‍न विकसित राष्ट्रों में फैला हुआ है। ब्रिटेन में भारतीयों की नई कॉलोनियाँ हैं। अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, इटली, रूस, स्वीडन, नार्वे, हॉलैंड, पोलैंड, जर्मनी, सऊदी अरब आदि देशों में भी पर्याप्त मात्रा में हिंदी भाषी जन निवास कर रहे हैं। हिंदी से इन देशों का संबंध कई वर्षों से है।
विदेशों में भारतीय मूल के डॉक्टर, इजीनियर स्वदेशी इंजीनियरों, डॉक्टरों की तुलना में अपेक्षाकृत ज्यादा सफल हैं। भारतीय कुशल श्रमिकों की भी इन देशों में भारी मांग है। खाड़ी देशों में तो ऐसे कुशल श्रमिकों की पूर्ति भारतीयों द्वारा ही हो रही है। निश्चय ही यह हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग का एक शुभ लक्षण तो है ही भाषा के प्रयोग व विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। वस्तुत: हिंदी भाषा के संरचना, स्वरूप व चिंतन में एक विशिष्ट प्रकार की संक्रमणशील संवेदना है जो सुन लेगा वह सम्मोहित हो जाएगा। ऐसे में यहां की हिंदी भाषा या भाषाओं के साथ-साथ, जनभाषा का रूप लेती है तो इससे निश्चय ही हिंदी भाषा का वांछित संर्वधन, विकास व प्रसार होगा।
इसके अतिरिक्त जो अत्यंत महत्वपूर्ण है वह यह है कि इन देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध विकसित हो रहे हैं। जिनके चलते रोजाना के कामकाज में तथा मीडिया व मनोरंजन के क्षेत्रों में निस्संदेह हिंदी के प्रयोग व विकास की असीम संभावनाएं निहित हैं।
सूचना-क्रांति के इस दौर में हर क्षण बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच हिन्दी भाषा एक नये जोश के साथ उभर रही है। कुछ वर्ष पहले तक हिन्दी को गँवारों, जाहिलों और कम पढ़े-लिखों की भाषा माना जाता था, लेकिन वैश्वीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में यह सोच तेजी से बदल रही है। 
कॉरपोरेट जगत मजबूरी में ही सही, हिन्दी को हाथों-हाथ स्वीकार कर रहा है। भारत में उपभोक्ता वस्तुओं के वृहद् बाजार को आज अनदेखा करना असंभव है। विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय बाजारों के खुलने के साथ ही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में पदार्पण किया। मार्केटिंग और व्यापार में भारतीयों से कहीं ज्यादा माहिर इन कंपनियों का यह अनुभव था कि किसी भी देश में वहां की भाषा, संस्कृति और जायका जाने बगैर अपने पाँव जमाना आसान नहीं है। ऐसे में इन कंपनियों ने अपने उत्पादों को भारतीय जरूरतों के हिसाब से ढालकर पेश किया। अपने उत्पादों के विपणन के लिए इन कंपनियों ने हिन्दी भाषा को चुना, क्योंकि यह भाषा सबसे बड़े तारगेट ग्रुप तक पहुंचती है। “ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास” से वास्ता रखने वाले इस बाजार में 60 प्रतिशत से अधिक लोग हिन्दी भाषी हैं। ऐसे में यह एक सुकुन देने वाला समाचार है कि हिन्दी भाषा का भारत में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में विस्तार हो रहा है।
हिन्दी से पर्याय साहित्य की क्‍लि‍ष्ट भाषा से नहीं है, बल्कि आम बोलचाल की भाषा से है, जिसका उपयोग आज का मीडिया खुलकर कर रहा है। ऐसे में हिन्दी के कुछ पैरोकार बदलते सांस्कृतिक परिदृष्य में भाषा के बदलते (बिगड़ते !) स्वरूप के प्रति चिंतित भी दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इस बीच यह भी स्पष्ट हो रहा है कि हिन्दी को अंग्रेजी से सीधे तौर पर कोई खतरा नहीं दिखाई देता। आज व्यापार को विस्तार के लिए हिन्दी का दामन थामना पड़ रहा है और हिन्दी व्यापार के साथ आगे बढ़ रही है। मीडिया और विज्ञापनों में हिन्दी का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ा है। हालांकि इसका उद्देश्य हिन्दी की सेवा कदापि नहीं है, बल्कि बहुराष्ट्रीय और देशी कंपनियों की नजर हिन्दीभाषी उपभोक्ताओं के एक बड़े बाजार पर है।
पिछले एक हजार वर्षों से अधिक समय से भारत में हिन्दी का व्यापक उपयोग होता रहा है। अपभ्रंश से प्रारंभ हुआ हिन्दी का रचना संसार आज परिपक्वता के चरम पर है। अग्रेजों के भारत आगमन के पूर्व ही हिन्दी ने अपनी जड़ें समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में जमा दी थीं। उस समय का भारत आज की ही तरह विश्व व्यापार का एक महत्वपूर्ण भागीदार था। इसलिए इस देश की जनता के साथ कार्य-व्यवहार करने के लिए हिन्दी का समुचित ज्ञान होना आवश्यक था।
वैश्वीकरण ने हिंदी को एक नई पहचान दी है. राजभाषा जब आम आदमी की भी भाषा होती है तो उसे और भी बढावा दिया जा सकता है. हिंदी की सरलता और अन्य भाषाओं से ग्रहण करने और उनको देने की प्रक्रिया इसे और लोकप्रिय बना सकती है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों और वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने हिंदी भाषा को पहचान दिलाने के नए मार्ग खोले हैं. हिंदी में उत्कृष्ट और प्रेरक साहित्य प्रदान करने के लिए लेखकों के साथ- साथ प्रकाशकों को भी विशिष्ट प्रयास करने चाहिए.


संपर्क-
डॉ टी महादेव राव, 202, आकांक्षा होम्स – II, आबिदनगर पार्क के पास, अक्कय्यापालेम, विशाखापटनम – 530 016 मोबाइल नंबर 9394290204

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