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देश के मूर्धन्य पत्रकार राकेश अचल का महत्वपूर्ण लेख- ‘रिया चरित्रम, देशस्य भाग्यम ‘

ByMedia Session

Aug 29, 2020

देश के संचार -सूचना माध्यमों पर लगातार तीन दिन से रिया चरित्र देख-सुनकर अवाम के कान पक गए हैं लेकिन सिलसिला है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है .हाँफते हुए संवाददाता और भागती हुई रिया के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है ,इसे देख मुझे बचपन में पढ़ा हुया ये श्लोक अचानक याद आ गया .”त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्यः”.
स्त्री के विषय में महर्षि वेदव्यास ने ये श्लोक लिखा था ,
वेदव्यास कहते हैं कि – स्त्री को मनुष्य तो क्या, देवता भी नहीं समझ सके हैं। उस के चरित्र में जितना फैलाव, गहराई और ऊंचाई है; वह कल्पना से परे है। महाभारत कालीन अनेक स्त्रियों के दृष्टांत उन के सामने साक्षात थे – मौन त्याग, सत्य और प्रखरता (गांधारी), गोपनीयता, धैर्य, त्याग (कुंती), शुचिता, तेजस्विता (द्रौपदी), निष्काम प्रेम (राधा, वृषाली), अचला (उत्तरा), निस्पृह ( चित्रांगदा, उलूपी) और अनन्य भक्ति ( विदुरा, विदुर की पत्नी)। महर्षि ने इन विलक्षण स्त्री चरित्रों का मूल्यांकन करते हुए ही उक्त श्लोक लिखा थां ।चूंकि मै कलिकाल में इस श्लोक का इस्तेमाल कर रहा हूँ इसलिए वेदव्यास से पूछे बिना ‘त्रिया चरित्रम’ को ‘रिया चरित्रम’ किये दे रहा हूँ .रिया के चरित्र को समझने के लिए एक और देश की सीबीआई लगी है तो दूसरी और पूरा मीडिया .
देश के गोदी मीडिया ने रिया की अस्मिता को पहले तार-तार किया और अब उसे महिमामंडित करने के लिए परेशान है. देश के मूर्धन्य पत्रकारों से लकर छुटभैये तक इस मुहिम में शामिल हैं और जो नहीं हैं वे सब मूर्ख और नारी विरोधी बताये जा रहे हैं .इसमें हालांकि नया कुछ भी नहीं है ,लेकिन है भी. रिया चरित्रम में दिलचस्पी रखने वाले लोग अब सोशल मीडिया पर सवाल कर रहे हैं कि ये ‘लिव इन रिलेशन’ और ‘रखैल’ शब्द का अंतर् क्या है ?अब ये अन्तर भी मूर्धन्य पत्रकार बता सकते हैं,हम जैसों की ऐसे विषयों में दिलचस्पी न पहले थी और न अब है.
सुशांत की मौत के मामले में प्रमुख आरोपी बनी रिया को जब सीबीआई ने आठ घंटे की सघन पूछताछ के बाद मुक्त किया तो देश का दृश्य मीडया उसकि एक झलक पाने और उसका मुंह खुलवाने के लिए ऐसे टूटा जैसे भूखे भेड़िये किसी क्षत-विक्षत शव पर टूट पड़ते हैं .आप भेड़िये की जगह गिद्ध का इस्तेमाल भी कर सकते हैं लेकिन मुझे ये भेड़िये ही नजर आये .भारी बरसात में रिया को इन खबरी भेड़ियों से बचकर घर जाने के लिए पुलिस की मदद लेना पड़ी ,और जब उसने पुलिस की मदद ली तो ये ही खबरी भेड़िये सवाल करने लगे कि-‘ क्या रिया इतनी वीआईपी है कि उसे पुलिस संरक्षण दिया जाये ?’
मेरी विवशता है कि मै एक ऐसे नीरस विषय पर लिख रहा हूँ जिसका इस देश की मौजूदा हालत से कोई लेना-देना नहीं है .ये न कोरोना की तरह महामारी है और न बेपटरी होती अर्थव्यवस्था .रिया और सुशांत का मामला एक निजी मामला है और फिल्मी दुनिया में बहुत आम .न जाने कितने सुशांत, न जाने कितनी रियाओं के साथ ‘लिव इन रिलेशन’ में रहते हैं,कभी शादी रचाते हैं,कभी भाग जाते हैं,और कभी मर भी जाते हैं ,लेकिन वे कभी सुर्खी नहीं बनते,क्योंकि उनके साथ न राजनीति बाबस्ता होती है और न गिरोह जैसे कि सुशांत के मामले में है .
अगर कोई गणित का जानकार हो तो बता सकता है कि सुशांत-रिया के मामले को लेकर भारत के दृश्य मीडिया ने कितना समय खर्च कर कितना कमाया है ?अगर इस मामले से टीवी समाचार चैनलों को राजस्व न मिल रहा होता तो कोई मूर्ख नहीं है जो लगातार इसके पीछे पागलों की तरह पड़ा है .किसी टीवी चैनल को रिया के चीरहरण या अस्मिता से कुछ नहीं लेना-देना ,उनका ध्येय इस मामले को तमाशा बनाकर धन कमाना है सो कमा रहे हैं और जितना नीचे गिर कर कमा सकते हैं कमा रहे हैं .इस मामले में जो उनके आड़े आएगा उन्हें नारी विरोधी करार दिया जा चुका है .
कल देर रात मेरे पास एक सेवा निवृत्त प्रोफेसर का फोन आया ,वे लम्बे समय से टीवी नहीं देखते,अगर देखते भी हैं तो केवल समाचार की सुर्खियां,लेकिन बीते दिनों वे रिया का इंटरव्यू देखने के लिए पूरे दो घंटे टीवी से चिपके रहे जब उनकी तंद्रा टूटी तो वे खुद हैरान थे कि ऐसे कैसे हुआ ? जो प्रोफसर साहब के साथ हुआ वो ही देश की तमाम जनता के साथ हुआ है,दर्शक ने जाने-अनजाने रिया चरित्र में अपने आपको उलझा लिया और यही तो टीवी इंडस्ट्री चाहती थी .आपका हुआ हो या न हुआ हो उसका उल्लू सीधा हो गया .
आरुषि हत्याकांड से लेकर ऐसे दर्जनों मामले हैं जो पुलिस या सीबीआई आजतक नहीं सुलझा सकी.सुशांत की मौत का मामला भी हफ्ते-दो हफ्ते की सुर्ख़ियों के बाद धुंधला पड़ जाएगा .नतीजा निकलेगा ‘ढाक के तीन पात’ लेकिन तब तक सुशांत के अशांत प्रदेश बिहार में विधानसभा के चुनाव हो जायेंगे.उफनती नदियां शांत हो चुकी होंगी .महाराष्ट्र में सरकार का चेहरा बदलने का अभियान सुस्त पड़ जाएगा लेकिन जबरन पागल बना दी गयी जनता को कुछ हासिल नहीं होगा .
मुझे महिर्षि वेदव्यास के अनुभव पर रत्ती भर भी संदेह नहीं है.आप उनके श्लोक को नारी विरोधी बता सकते हैं,आपको इसकी आजादी है और मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है ,लेकिन मै मानता हूँ कि सीबीआई हो या भारत के अन्वेषक टीवी पत्रकार रिया से सच का एक अंश भी नहीं उगलवा पाएंगे. रिया राजदीप जैसों के साथ दो घंटे बैठकर भी वो ही सब कहेगी जो उसने तय कर रखा है .कोई जांच एजेंसी रिया के साथ थर्ड डिग्री का हथकंडा इस्तेमाल नहीं कर सकती और पिज्जा-बर्गर खिलाकर किसी भी आरोपी से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता फिर वो चाहे रिया हो या कोई और .
आप हैरान होंगे कि मुंबई से एक हजार किमी दूर बैठकर मेरे जैसा अदना सा लेखक रिया चरित्र पर इतने अधिकार पूर्वक कैसे लिख रहा है ?लेकिन इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है. आज सूचनाओं का ऐसा सैलाब हमारे सामने उपलब्ध है कि आप अगर जरा भी सामान्य विश्लेषण क्षमता रखते हैं तो संभावित परिणाम की भविष्यवाणी कर सकते हैं,इसके लिए आपका ज्योतर्विद होना आवश्यक नहीं है. आप मेरे इस आलेख को किसी गैजेट में संरक्षित कर लीजिये और जब रिया-सुशांत मामले का पटाक्षेप हो जाये तब निकल कर पढ़िए और मुहे याद कीजिये ,तब तक के लिए आप आबाद रहें और आपका टीवी आबाद रहे ,क्योंकि आज रिया का चरित्र होई इस देश का भाग्य,दुर्भाग्य है.

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