कोरबा-ग्रुप के साहित्यकारों के साथ, अन्य साहित्य-लेखकों-से मैं कहना चाहता हूँ… कि कोई भी विघा, साहित्य-की, तुक्ष नहीं होती है…। बंधन में बंधा, मात्राओं में बंधा-काव्य लेखन ही कविता कहलाता. है…बल्कि…स्व.शरद जोशी को देंखें… जोशी जी ने व्यंग्य विघा-गघ-पघ को लेकर ,कविता पठन पर मंचों-पर और मंच-के परे भारत-में समा बांधकर क्रांति ला दी थी कि हिन्दी के पाठकों-ने सिर्फ शरद जोशी को अकेले मंच-पर पठन-हेतु आमंत्रित करना शुरू किया था…। मुझे याद है कि कोरबा-में शरद जोशी जी को मप्रविमं हसदेव विघुत सीनियर क्लब में बुलाया गया था…और मुंह-मांगा पारिश्रमिक दिया गया था…। और.आज
मेरा कहना यह कि कविगण दूसरी विधाओं से नफरत या दूरी या हीन-भावना या मैं-पन, क्यों रखते हैं…!!! या चाहते हैं- कि दूसरी विघाओं के लेखक को राजनीति कर काटना शुरू करते हैं…। क्यों ? देखिये , शरद जोशी-जैसों को …कि एक व्यक्ति ने युग बदल दिया… था !! ज्यादा दूर क्यों जायें…हम भारतीय-लेखक ऊर्दू-गजलों को सदियों से लिखते चले आये हैं कि बगैर ऊर्दू गजल थी-ही नहीं…! दूर की सोचें तो हमारे जिले के नवरंग भाई ने हिन्दकी गजल का निर्माण अपनी-क्षमता स्वरूप दिया…कि हिन्दी-की अपनी गजल क्यों नहीं…?सजल गजलें भी ऐसा-ही प्रयास है। और हिन्दकी मिली, अपने जिले के साहित्यकार के द्वारा… कि जैसे साहित्य-भवन मिला, कुछेक साहित्यकारों मेहनत-द्वारा…कि किसी ने भवन बनाने अपने जेब-से तो धन नहीं लगाया था… कि मेहनत-सोच-आदि आदि में दिलीप अग्रवाल की अत्यधिक मेहनत, योगदान-सराहना सबने की है…। और नगरपालिका निगम ने साहित्य-भवन हमें देकर छग में ही नहीं, बल्कि पूरे-प्रांतों में कोरबा का नाम रोशन किया है…!
और अब बात और बनें कि रायपुर में होनेवाली दिनकर जयंती कविता प्रतियोगिता में रु.21000, 12000, 5100, 3100, आदि आदि पुरस्कार… और लोकसदन कोरबा कविता-प्रतियोगिता का एकल-साहित्यकार-ईनाम रु. 10.000 जीतें….जिसमें बच्चे-युवा या वरिष्ठ भी हो सकते हैं। और पुराने और युवा-लेखक भी…दूसरे जिलों से अच्छे हैं…
अत:…मैं प्रतियोगिता की बात को छोड़कर यह संकेत देना चाहता हूँ कि ऐसी प्रतियोगिता पहले और-भी साहित्य- विधाओं-में होती थीं…। पर आज नहीं !! कारण वही है कि आगंतुक साहित्यकारों ने काव्य-साहित्य को माध्यम बनाया… कहानी-लघुकथा-संस्मरण-व्यंग्य-लेख-आलेख-नाटक-फिल्म पटकथा आदि…सब छोड़ दिया !
और और…मैं अपनी बात पर आता हूँ-
कि कवि बहुतेरी-भीड़ लेकर छा गये हैं…आज भारत में, कि हर कवि अपना ग्रुप बना लिया है…
और काव्य-लेखन…से कहानियां-लघुकथाएं-संस्मरण-व्यंग्यलेखन-आलेख-नाटक-फिल्में-पटकथा आदि लिखना बहुत-ही कठिन साधना है…
मैं अपनी युवावस्था में 1965 में कोरबा आया था। अपने जीवन में कविताएं और आधुनिक-कविताएं भी लिखता रहा हूँ व गीत-लेख-आलेख-व्यंग्य-कहानियां-लघुकथाएं-नाटक-उपन्यास-गीत नाटिका-फिल्मी पटकथाएं भी लिखें हैं… और ता-उम्र अखिल भारतीय स्तर पर आज भी छप रहा हूँ… कि पाठक बहुत थे और आज भी हैं… तो तो क्या मुझे सिर्फ कविता या कहानियां ही लिखना चाहिए था ?? जैसा आज का युग है…
लोकल स्तर पर भी सब लिखा… कि मप्रविमं पत्रिका में भी कोरबा से मैं कहानियां-कविताएं-गीत-नाटक लिखता रहा । यह बतलाते हुये मुझे गर्व है कि मैं मेरी पहली- कहानी…वक्ता समाचार-पत्र में 1965 में छपी थी। दिलीप अग्रवाल की लोकल पत्रिका में भी छपा हूँ…।
तो…क्यों झिझकते हैं सब विधा लिखने से साहित्यकार ??
और आजकल तभी कोरबा ही नहीं, पूरे भारत में कवियों की भयंकर-भीड़ है… तो एक ही विघा पकड़ कर आप-तो सिर्फ कूप-मंडूक ही बन चुके हैं…
मुझे याद है- 1974 के आसपास बाल्को कोरबा आया था और बाद में या आज-भी बाल्को में कवियों-की शुरू -से भारी भीड़ हैं…कि बाल्को ने शंकर राव नायडू- मूलचंद तिवारी- पुष्कर भारती- माणिक नवरंग कवि दिये…कि मूलचंद तिवारी का नाम कोरबा-साहित्य-भवन के पटल-बोर्ड पर सबसे ऊपर है…परन्तु इस लिस्ट पर फिर-से ध्यान देना होगा…
मैंने काव्य-लेखन में कविता-विघा व अकविता विघा पर खूब लिखा है…। कविताएं सभी लिख रहे हैं… पर मैंने अन्य-विघा संग अकविताएं खूब लिखीं है…कि बिना किसी बंधन, मात्रा-बंधन, विधा-बंधन आप बिना पघ और गघपन लिये अपनी रचना लिख सकते हैं… जैसे कविता की एक विघा है गीत-नाट्य्। वैसे ही अकविता को अनेक विषयवस्तु में लिखा जा सकता है…।
मैं एक अपनी आधुनिक-विघा की एक अकविता पोस्ट कर रहा हूँ…
यह… कविता-विघा बिरले ही लिख पाते हैं… इसमें भी साधना.है….चिंतन-मनन है… गहराईयाँ हैं… और पठन-पाठन पर रोचकता, क्रांति… और वाह ! है…आह!भी है…
हाँ…कोरबा-साहित्यकारों से कलम-के-धनी के बारे में यह कहा जा सकता है… कि कोरबा जिले के दो-साहित्यकार राष्ट्रीय-स्तर पर प्रसिद्ध थे व हैं … न छग-स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी…हैं। बाल्को/एनटीपीसी के माणिक नवरंग और दूसरे कौन-है…? यह सब जानते हैं…
याद करें… दुष्यन्त की ग़ज़ल रचना…मेरी अकविता-विघा-मैं…….
कौन कहता है. ..
आकाश-में सुराग
नहीं हो सकता…?
तबीयत-से
एक पत्थर
आकाश
मैं
उछालो तो…
साहित्यकार..
यारों…
प्यारों…