मध्यप्रदेश में विधानसभा उप चुनावों को देखते हुए सरकार और सांसदों ने दरियादिली दिखाना शुरू कर दी है। सरकार के मुखिया स्थानीय सांसदों,और पूर्व विधयकों के साथ गली-गली में घोषणाओं और शिलान्यासों की सौगात लेकर घूम रहे हैं इसलिए मतदाताओं को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि ये तमाम घोषणाएं बिना किसी योजना और बजट के आनन-फानन में मतदाताओं को लुभाने के लिए की जा रहीं हैं।
ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा को पिछले आम चुनावों में जिन सीटों पर मुंह की खाना पड़ी थी उन्हीं सीटों से चुने गए कांग्रेस विधायक अब विधानसभा की सदस्य्ता से त्यागपत्र देकर भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़ेंगे। दरअसल ये चुनाव जनता की मर्जी के नहीं बल्कि थोपे हुए चुनाव है। इन चुनावों का खर्च जनता की पीठ पर लादा गया अनावश्यक बोझ है। पिछले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह,केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के नवनिर्वाचित राज्य सभा सदस्य श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अंचल में शिलान्यासों की झड़ी लगा दी है। नई घोषणाएं की जा रहीं हैं सो अलग ,
चंबल अंचल शुरू से विकास के लिए तरसने वाला अंचल है ,यहां से कोई भी सांसद या मंत्री रहा हो उसने अंचल में रोजगार उन्मूलन समेत ऐसा कोई भी ऐसा काम नहीं किया जिससे जनता सीधे लाभान्वित हुई हो। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के कार्यकाल में भी कोई बड़ी उपलब्धि रेखांकित करने लायक नहीं है लेकिन अब अचानक चंबल एक्सप्रेस वे ,मेडिकल कालेज जैसी योजनाओं की घोषणाएं की जा रहीं हैं। तोमर और सिंधिया ने एक जमाने में अंचल की एकमात्र छोटी रेल लाइन को ब्रॉडगेज में बदलने के लिए लड़ाई लड़ने का नाटक किया था। आअज दोनों एक दल में हैं लेकिन कोई भी इस परियोजना की बात नहीं कर रहा।
ग्वालियर चंबल अंचल में तीन पुराने औद्योगिक विकास केंद्र मालनपुर,बानमौर आदि उजाड़ पड़े हैं ,इन क्षेत्रों के विकास के लिए किसी के पास कोई योजना नहीं है ,पिछले छह माह में भाजपा की सरकार ने उससे पहले 18 माह की कांग्रेस सरकार में स्थानीय प्रतिनिधि अंचल के लिए कुछ नहीं ला पाए लेकिन अब अचानक सैकड़ों करोड़ की योजनाओं के शिलान्यास कर दिए गए हैं ,क्या इन योजनाओं के लिए पहले से बजट में कोई प्रावधान है ?शायद नही। ग्वालियर के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिलटल के अलावा अस्पताल की नयी विंग बनाने के लिए 300 करोड़ से अधिक की जरूरत है लेकिन इसके बारे में कोई चर्चा नहीं,कोई डेढ़ साल से अस्पताल का निर्माण कार्य ठप्प पड़ा है। कमलनाथ ने अपने कार्यकाल में ग्वालियर के बजाय छिंदवाड़ा के जिला अस्पताल के लिए 1450 करोड़ रूपये देने की घोषणा कर दी थी तब किसी जन प्रतिनिधि ने चूं तक नहीं की थी ,अब सब मुक्तहस्त से घोषणाएं कर रहे हैं।
दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य कि आज मुख्यमंत्री के ओएसडी बृजमोहन शर्मा ग्वालियर के संभाग आयुक्त रह चुके हैं उन्हें इन अधूरी योजनाओं की पूरी जानकारी है लेकिन वे भी किसी को कुछ याद दिलाने की स्थिति में नहीं हैं ,मेरी मान्यता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस स्थिति में हैं कि वे अंचल की अधूरी पड़ी योजनाओं को पूरा करने के लिए शासन से धन ला सकते हैं इसलिए उन्हें पहले पुराणी योजनाओं के बारे में प्रयास करना चाहिए । चुनावी घोषणाओं से जनता का कल्याण नहीं होने वाला। खुदा न खास्ता यदि चुनाव परिणाम भाजपा की उम्मीदों के अनुकूल न आए तो ये सब योजनाएं कागजों में कैद रह जायेंगीं ।
चुनावों का चूंकि अब नैतिकता से कोई रिश्ता रह नहीं गया है इसलिए कोई किसी को टोकने की जरूरत भी नहीं समझता लेकिन हम बेशर्म लोग अपना काम करते ही रहते हैं भले हीकोई सुने या न सुने। उपचुनावों के मौसम में स्थानीय मतदाताओं को ठगी की कोशिशों से सावधान रहना चाहिए क्योंकि जनसेवा के नाम पर उनके साथ सिर्फ वे चेहरे हैं जिनका जनसेवा से कोई ज्यादा लेना नहीं है । वे अपनी सुविधा की राजनीति कर रहे है। कल कहीं थे,कल फिर कहीं हो सकते हैं। इसलिए सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। जनता को अपने नेताओं से सवाल करने की आदत डालना चाहिए ,जयकारे लगाने और चरण चुमबन करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
@ राकेश अचल