सवाल आपके जवाब गांधी भाई रोहरानंद के
प्रश्न- सोनी तिवारी , बिलासपुर
ब्रह्मचर्य क्या है गांधी जी का इस पर बड़ा विश्वास था और ब्रह्मचर्य को लेकर के महात्मा गांधी विवादित भी है कृपया हमारी आंखें खोलने वाला कुछ तथ्य सच बताएं।
-गांधीजी का जीवन खुला हुआ सच है। उन्होंने कभी कुछ भी नहीं छुपाया। गांधी जी कहा करते थे कि विवाह धार्मिक संस्कार है इसलिए वह भोग के लिए नहीं बल्कि संयम के लिए है । हमारे यहां चार आश्रम है उनमें से गृहस्थ आश्रम दूसरा है। गृहस्थ जीवन में वैभव के लिए स्थान नहीं है सेवा के लिए बहुत स्थान है। और सेवा तथा संतति जनन साथ-साथ नहीं चल सकते फिर भी दांपत्य जीवन में संतान के लिए स्थान तो है।
लेकिन जब संतान उत्पत्ति आवश्यक हो तभी पति पत्नी संयोग कर सकते हैं यह संयोग सोच समझ कर किया जाना चाहिए आकस्मिक उत्तेजना के वशीभूत होकर नहीं।
प्रश्न- खूबचंद साहू, रायगढ़
आजकल विदेशी धन निवेश की बात छत्तीसगढ़ सरकार या देश भर में में हो रही है, इस विषय पर महात्मा गांधी के क्या विचार हो सकते हैं।
-गांधीजी के विचार बहुत ही प्रगतिशील थे और सर्वकालिक भी।
एक जगह उन्होंने लिखा था – किसी कंपनी का डायरेक्टर कोई भारतीय है और कंपनी के प्रबंध में उनकी चलती है और वह कंपनी पूरी तरह भारत के हित पर है तो उस कंपनी को मैं स्वदेशी कहूंगा। भले ही उसकी सारी पूंजी विदेशी क्यों ना हो।
जैसे एक हाथ कताई कंपनी का पूरा नियंत्रण मेरे हाथ में हो लेकिन मैं अपने अधीन कुशल गोरे कर्मचारी रखूं और ब्याज या बिना ब्याज विदेशी पूंजी भी उसमें लगाऊं तो मेरा दावा है कि वो कंपनी पूरी तरह स्वदेशी है।
प्रश्न- राजेश सोनी, कोरबा
महात्मा गांधी के सत्याग्रह के बारे में बहुत कुछ सुना है कुछ ऐसा बताइए कि हृदय से महसूस हो कि सत्याग्रह क्या है।
सत्याग्रह कोई मामूली चीज नहीं है वह जीवन का एक तरीका है अनुशासन की इसके लिए जरूरत है, अपार धीरज और ज्यादा से ज्यादा कष्ट सहने की क्षमता सत्याग्रह मांगता है, सविनय अवज्ञा सत्याग्रह का महज एक छोटा सा अंग है।
सत्याग्रह के रास्ते पर कष्ट मिलेगा, जेल मिलेगी, बदहाल जीवन मिलेगा मगर यह सब प्रसन्नता पूर्वक सहना होगा। कोई दुर्भावना नहीं रखनी होगी। आशा है,अब आप महात्मा गांधी के सत्याग्रह को समझने लगे होंगे।
प्रश्न- कमल सरविद्या, कोरबा
पहले अंग्रेज हमारे मालिक थे अब देश के नेता मालिक जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
महात्मा गांधी होते तो क्या कहते और कैसे हम लोगों को हिदायत देते।
-महात्मा गांधी तो सेवा की बात करते थे प्रजा की सेवा की बात करते थे कि आजादी के बाद देश की जनता की सेवा चुने हुए नेता करेंगे।
महात्मा गांधी की सोच थी कि जनता के लिए नेता सेवक के बतौर रहेंगे। मालिक के रूप में कभी भी नहीं।
मगर आज के नेता शायद महात्मा गांधी के रास्ते को भूल गए हैं है।
प्रश्न- सुनील शर्मा, अंबिकापुर
स्वास्थ्य को लेकर के चिकित्सा पद्धति पर महात्मा गांधी के क्या विचार हुआ करते थे।
महात्मा गांधी ने समाज में स्वास्थ्य को लेकर के अपने बेबाक विचार रखे हैं चिकित्सकों को उन्होंने खूब खुली हुई भाषा में कहें तो खूब लताड़ा है।
गांधीजी ने एक दफा कहा था कि उनके पैर में सूजन हो गई थी डॉक्टर डरने लगे थे कि कहीं मेरे दिल गुर्दे कमजोर तो नहीं हो रहे हैं।
मगर एक दिन महात्मा गांधी का एक सहयोगी एक हरा पत्ता लेकर आया और बोला मेरे पिताजी को भी ऐसी ही दिक्कत थी इस हरे पत्ते से वह ठीक हो गए थे उन्होंने प्रार्थना की की मैं भी इसका प्रयोग करके देखूं मुझे उनका प्रस्ताव मानने में कोई संकोच नहीं था।
प्रश्न- सुंदरजी श्याम, रायपुर
महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस क्या उत्तर दक्षिण थे क्या दोनों का एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव नहीं था।
-सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के प्रति सम्मान का भाव रखते थे। एक दफा उन्होंने सार्वजनिक रूप से लिखा था कि मुझे दुख के साथ महात्मा गांधी से सहमत होना पड़ा है लेकिन उनके व्यक्तित्व के प्रति मेरा आदर भाव किसी से भी कम नहीं है, उनके विचार कुछ भी हो मेरी हमेशा यह कोशिश रहेगी कि उनका विश्वास प्राप्त करूं और यह कोशिश मैं सिर्फ इसलिए करूंगा कि मेरे लिए यह दुःख की बात होगी कि मैं अन्य लोगों का तो विश्वास जीत सकूं लेकिन भारत के सबसे महान व्यक्ति का विश्वास न जीत सकूं।
प्रश्न- बबीता दूबे, दुर्ग, छत्तीसगढ़
गांधी और मौन एक दूसरे के पूरक हैं। मौन के बारे में महात्मा गांधी की विचारधारा से कृपया अवगत कराएं क्या मौन में सचमुच कोई ताकत है।
सभी ज्ञानी ध्यानी यह कहते हैं कि मौन व्रत धारण करना चाहिए या कम से कम बोलना चाहिए, यह तो आप मानेंगे।
गांधीजी मौन रहा कहते थे सप्ताह में एक पूरा दिन। संभवत शुक्रवार का दिन होता था जब वह मौन व्रत पर रहा करते थे। एक समय में तो उन्होंने लगभग 2 महीने तक पूर्णतया मौन धारण कर रखा था।
गांधी का मौन आध्यात्मिक और शारीरिक दोनो कारणों से आवश्यक हो गया था। पहले पहले मानसिक दबाव कम करने के लिए उन्होंने मजाक मजाक में मौन शुरू किया था। जब उन्होंने उस ताकत का एहसास किया तो फिर तो मौन का जादू सर चढ़कर बोलने लगा।
गांधीजी मानते थे कि मौन का तात्पर्य है ईश्वर से सीधा संपर्क।
उन्होंने इस प्रसंग पर बहुत कुछ कहा है जो पढ़ने के बाद समझने के बाद आप भी इस मौन के मुरीद हो जाएंगे।