बिलासपुर/ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जस्टिस रजनी दुबे ने 22 साल पुराने एक मामले की पूरी सुनवाई हिंदी में की और आदेश भी हिंदी में ही जारी किया।
महासमुंद जिले के पिथौरा थाना में बाबूलाल अगरिया के खिलाफ 1 मई 1999 को छेड़खानी के आरोप में धारा 354 आईपीसी तथा एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज किया गया था। रायपुर न्यायालय ने उसे करीब 16 माह की अलग-अलग सजा सुनाई। फैसले के खिलाफ अभियुक्त ने हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह निर्दोष है। पुलिस ने उसके विरुद्ध काफी विलंब से अपराध दर्ज किया और इसका कोई संतोषजनक कारण भी नहीं बताया है।
निचली अदालत में केस चलने के दौरान ही अभियुक्त बाबूलाल 25 दिन की जेल की सजा काट चुका था। 14 सितंबर हिंदी दिवस पर यह प्रकरण जस्टिस रजनी दुबे की कोर्ट में सुनवाई के लिए रखा था। जस्टिस दुबे ने एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज मामले से उसे बरी कर दिया साथ ही छेड़खानी की सजा को कम कर दी।
कोर्ट के संज्ञान में यह बात लाई गई कि जिस समय अभियुक्त विरुद्ध अपराध दर्ज किया उसकी उम्र 28 वर्ष थी और पिछले 22 वर्षों से विभिन्न अदालतों में काफी कष्ट झेल चुका है। कोर्ट ने अभियुक्त को 25 दिन की सजा से जो उसने जेल में बिताई थी से ही दंडित किया है।
ज्ञात हो छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में 20 अक्टूबर 2012 से 8 अक्टूबर 2014 तक जस्टिस यतींद्र सिंह मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने हिंदी में फैसला देने की परंपरा शुरू की थी। वे हर दिन कई आदेश हिंदी में देते थे। डिविजन बेंच में मामलों को सुनते हुए भी वकील और पक्षकारों की सुविधा का ध्यान रखते थे। उनके हिंदी फैसले का अंग्रेजी में बाद में अनुवाद कराया जाता था। चीफ जस्टिस रहे दीपक गुप्ता ने पीएससी 2003 की गड़बड़ियों के मामले की पूरी सुनवाई हिंदी में की थी और याचिकाकर्ता को हिंदी में ही जिरह करने की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट के शुरुआती दिनों में जस्टिस फखरुद्दीन ने 8 जनवरी 2002 को अभनपुर के एक मामले में छत्तीसगढ़ी में फैसला सुनाया था। इस फैसले के जरिए एक महिला को हत्या के आरोप में स्थायी जमानत दी गई थी।