शिवनाथ जोक का साथ ले के
महानदी बौरायी है l
सागर से कमतर नहीं
सागर उसकी परछाई है l
सेतु को लो निगल के
अपना भूख मिटाई है l
पा के नेह बादल का
नई जवानी पायी है l
निचली बस्ती में घुस के
हाहाकार मचाई है l
लगता नर नारायण से
मिलने की ढीटाई है l
कौन चैन से सोएगा
सबकी नींद उड़ाई है l
देख लहरें उपजे भय
ऐसे वो उफनाई है l
दे सुनाई शोर भी ऐसा
ज्यूँ कलिका धाई है l
राह अड़ा जो मिले
मान दर्प धरासाई है l
जलमग्न घाट, घटौन्धे
मन्दिर और अमराई है l
जैसे सब बहा ले जाने
की कस्में खाई है l
कटगीहा विनती करे
हो शांत तू सबकी माई है l
प्रभात कटगीहा
कटगी