
लोकतंत्र की एक ही खूबसूरती है कि आप किसी से भी,कोई भी सवाल कर सकते हैं,जबाब मिलें या न मिलें ? मै और मेरे जैसे असंख्य लोग ये काम रोज करते हैं तो कोई ख़ास बात नहीं होती लेकिन जब कोई विधायक ये काम करता है तो उसका नोटिस लिया जाता है,लिया जाना चाहिए .ग्वालियर के कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने भाजपा के राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया की कथित गुमशुदगी के बारे में अपने ट्विटर पर एक पोस्टर चस्पा किया ,तो मुझे भी मजा आ गया .
राजनीति में ऐसी हरकतें वक्त ,बेवक्त होती रहती हैं,इन्हें देखकर राजनीति का सन्नाटा तो नहीं टूटता लेकिन स्वाद जरूर बदल जाता है .कोरोनाकाल में जब सब कुछ बेजायका हो चुका है तब पाठक की ये कोशिश कम से कम कुछ लोगों को तो जायकेदार लगती ही है .कम से कम मुझे तो लगी ,क्योंकि आजकल सवाल-जबाव का मौसम ही नहीं रहा .पाठक जी कांग्रेस के उन विधायकों में से एक हैं जो सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए थे ,हालांकि वे पहली बार के विधायक थे,यदि सिंधिया के साथ भाजपा में जाते तो आज कम से कम मंत्री तो होते .
सिंधिया से सवाल करना भले ही कोई बड़ा काम न हो लेकिन एक जरूरी काम तो है ही. कांग्रेस में जिन लोगों ने सिंधिया से या उनके पूर्वजों से सवाल किये वे आज उम्र की हीरक जयंती मना रहे हैं लेकिन राजनीति में खड़े नहीं हो पाए .सवाल करने की ये कड़ी और बड़ी सजा है .कांग्रेसियों को मिली इस सजा को देखते हुए अब भाजपा में भी कोई सिंधिया से सवाल नहीं करता .पूर्व सांसद प्रभात झा और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया जैसे लोगों को सिंधिया से सवाल करने की बुरी लत थी लेकिन तब वे भाजपा में नहीं थे .अब दोनों मौन हैं और लूप लाइन में हैं .
बात सिंधिया के लापता होने की है .कोरोनाकाल में सिंधिया लापता थे या नहीं ,ये ग्वालियर की जनता जानती होगी ,मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है . हाँ ,वे कोरोनाकाल में विधायक प्रवीण पाठक की तरह आक्सीजन टेंकर के आगे-पीछे दौड़ते नहीं दिखाई दिए .उन्होंने कोरोनाकाल में कोरोना के मरीजों की जो इमदाद की, उसका जिक्र ज्यादा नहीं हुआ ,हालांकि उनके जनसम्पर्क कार्यालय ने इसका जबाब दिया था ,कि सिंधिया ने क्या किया और क्या नहीं ?पाठक जी शायद इसे पढ़ नहीं पाए .मै भी सिंधिया से पाठक जी की ही तरह वक्त,बेवक्त वाल करता रहता हूँ ,क्योंकि मुझे लगता है कि इससे आपके लोकतांत्रिक होने का सबूत मिलता रहता है ,लेकिन विधायक पाठक जी ने जिस तरह से सिंधिया से सवाल किये उससे बहुत कुछ बात बनी नहीं .
सिंधिया ग्वालियर की जनता से अपना ढाई सौ साल पुराना नाता बताते हैं ,पाठक जी ने ऐसा कोई दावा कभी किया नहीं,वे कर भी नहीं सकते थे ऐसा क्योंकि वे राजनीति में थे ही नहीं. वे अपने संघर्ष और नसीब के बूते विधायक बने हैं ,उन्होंने अपनी विधायकी बेची नहीं इसलिए उनका सम्मान करता हूँ लेकिन सिंधिया से जैसे उन्होंने सवाल किया या ट्विटर पोस्टर लगाया उससे मुझे उस पंसारी की याद आ गयी जो लाकडाउन में ग्राहकी न होने से खाली बैठा-बैठा तराजू पर बाँट रखकर ही तौलता रहता है,आखिर वक्त तो काटना है !
पाठक जी अगर अपनी जेब से कुछ पैसा खर्च कर सिंधिया के लापता होने के पोस्टर शहर की दीवारों पर चस्पा कराते तो मजा आता,सचमुच मजा आता .कम से ग्वालियर की जनता को पता तो चलता कि किसी मर्द विधायक ने महल के खिलाफ खड़े होने का दुस्साहस किया है ,लेकिन पाठक जी कंजूसी कर गए.जनता को पता ही न चलता की पाठक जी ने क्या सूरता दिखाई है? भला हो ग्वालियर के अखबारों का कि उन्होंने पाठक जी की खबर छाप दी ,जिससे कम से अखबार पढ़ने वालों को तो पता चल गया की पाठक जी ने कुछ किया है .
ग्वालियर के हमारे तमाम मित्र बताते रहते हैं कि जब उन्हें कोरोना हुआ तब किसी ने उनकी खैर-खबर ली हो या न ली हो किन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया नाम के किसी आदमी ने उन्हें फोन कर खैरियत जरूर ली.किसी को इंजेक्शन दिलाये तो किसी को आक्सीजन ,किसी को अस्पतालों में भर्ती कार्या तो किसी को कोई और इमदाद की .एक नेता इतना भी कर दे तो बहुत है ,वरना इस कोरोनाकाल में अपने लोग कन्नी काट रहे हैं .हाँ ये सच है कि सिंधिया को हमने आक्सीजन सिलेंडर के पीछे दौड़ते नहीं देखा .ऐसा क्यों हुआ राम ही जाने .
जन प्रतिनिधियों के लापता होने के पोस्टर जब तब छपते रहते हैं. हमारे साथी अनूप मिश्रा जब मुरैना के सांसद थे तब उनके भी ऐसे ही पोस्टर छपे थे. ये सौभाग्य केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी प्राप्त है ,लम्बी फेहरिस्त है ऐसे सौभाग्यशाली लोगों की जिनकी गुमशुदगी के पोस्टर दीवारों पर लगते रहते हैं. सिंधिया को तो इस तरह के वाक्यों का अभ्यास सा हो गया है .वैसे भी अब इस तरह के पोस्टर पढ़कर न कोई गुमशुदा व्यक्ति का पता बताता है और न उसे कभी इसके लिए ईनाम मिलता है .ये पोस्टर रस्म अदायगी भर होते हैं ,ठीक वैसे ही जैसे कोई कटटर पंथी अपने विरोधी का काम तमाम करने के लिए ईनाम की घोषणा करता है और खुद चूहे के माफिक बिल में जा छिपता है .पूर्व में भी सिंधिया के अलावाभाजपा और कांग्रेस के बहुत से नेताओं के पोस्टर छप चुके हैं
मुझे खुशी है कि सियासत में ऐसे लोग भी हैं जो इस तरह की पोस्टरबाजी के बावजूद अपना काम बेफिक्री से करते रहते हैं. वे मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकों में खुलकर प्रशासन को हड़काते हैं और केंद्रीय मंत्री देखते रह जाते हैं .लोकतंत्र में हमें दोनों तरह के जनप्रतिनिधियों की जरूरत है. अदृश्य होकर काम करने वालों की भी और टेंकरों के पीछे दौड़ने वालों,सड़कें सेनेटाइज करने वालों,शौचालयों की सफाई करने वालों और किसी के भी दरवाजे पर बैठकर लंच करने वालों की भी .ये न हों तो लोकतंत्र बेहद रूखा-सूखा धंधा हो जाये .अब देखिये न जैसे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पास हनी ट्रेपकांड की पेनड्राइव होने का जिक्र छेड़ दिया तो मजा आ रहा है न ?एसआईटी उनसे पेनड्राइव मांग रही है. सरकार ने ऊके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है सो अलग .यदि वे ये रहस्योद्घाटन न करते तो क्या कुछ होता ?
लोकतंत्र में हर निर्वाचित विधायक का काम निर्धारित है ,लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो उसे करना चाहिए .पाठक जी ने ऐसा किया इसलिए मै उनका प्रशंसक हूँ .वे अपना राजनितिक भविष्य दांव पर लगाकर आखिर कुछ कर तो रहे हैं ?वरना कौन है जो कहे की-आ बैल मुझे मार ?
@ राकेश अचल