मराठी भाषा की कविता सौ.धनश्री जयंत बापट द्वारा लिखी गयी है. रचनाकार, गांव कोंढाली, जिल्हा नागपुर, राज्य महाराष्ट्र से है. इस खूबसूरत कविता का शब्दशः अनुवाद कवयित्री कीर्ति शर्मा द्वारा किया गया है तथा कविता के विषय से संबधित एक बेहतरीन चित्र वैष्णवी दुबे द्वारा बनाया गया है.*
हे विघ्नहर्ता गणराया
हे विघ्नहर्ता गणराया,
सर्वांवर राहो तुझी कृपा छाया.
असे बुध्दिची देवता तू,
दुष्टांचा संहारक ही तू.
मात्रूपित्रू पूजक तू,
प्रथम पूज्यनीय तू.
आहेस सुक्ष्म निरीक्षक तू,
भक्तीमार्गाचा प्रशिक्षकही तू.
दु:खाचा तारणकर्ता तू,
सुखाचा असे त्राता तू.
आदि तू आणि अंतही तू,
या चराचरात वसतोस,
फक्त तू आणि तू.
हे विघ्नहर्ता सुखकर्ता,
क्लेश हरतील तव पद धरिता.
तुझ्या आगमनाची आस
लागली माझ्या मना,
नम्रपणे करते आज
तुला एक प्रार्थना.
तुला न अशक्य काही गणराया
ये ना रे! भूतलावर,
हा क्लेशदायी कोरोना घालवाया.
हिंदी अनुवाद :
हे विघ्नहर्ता गणराज
हे विघ्नहर्ता हे गणराज,
सबपर रहे तेरी कृपा अपार।
तु बुद्धि का दैवत है,
दुष्टों का संहारक है।
मात पिता को पुजनेवाले तुम
प्रथम पुजनीय भी हो तुम।
तुम ही सुक्ष्म निरीक्षक हो,
भक्ति मार्ग प्रशिक्षित हो।
दुखो को तारण करने वाले,
सुखोंको धारण करने वाले।
आदी तु और अंत भी तु,
इस चराचर में बसने वाला केवल तु ही तु।
हे विघ्नहर्ता हे सुखकर्ता,
तेरे पांव छुतेहि सारे दुःख दूर हो जाते हैं।
तेरे आनेकी मै राह देखती हूं,
विनय पूर्ण तुझसे प्रार्थना करती हूं
तेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं,
इस धरती पर आओ ना।
कष्ट रूपी कोरोंना को दूर भगाओ ना।
मूल लेखिका : धनश्री जयंत बापट
अनुवादक : कीर्ति शर्मा
चित्रकार : वैष्णवी दुबे