भारत और भारत के लगभग सभी प्रान्तों में राजभाषा हिन्दी और अंग्रेजी की अमिट छाप दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। सदियों से इन दोनों भाषाओं ने विशाल बरगद की भांति अपनी शाखाओं को, जड़ों को जनमन के भीतर तक फैला रखा है। ऐसी स्थिति में वर्तमान में छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा को तीसरे क्रम पर ही हम पाते है।
कार्यालयीन भाषा बनने में बाधक – समाधान
यह सर्वमान्य है कि किसी भी राज्य की कार्यालयीन भाषा वहां के निवासियों की समझ के अनुरूप होना चाहिए। इसीलिए हमारे देश के विभिन्न राज्यों में संचालित कार्यालयों में वहीं की भाषा का उपयोग अधिकांशतः किया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य को बने अभी 22 वर्ष हुए है। बाईस वर्ष के पूर्व इतिहास को देखें तो स्पष्ट होगा कि राज्य को बनने के पूर्व छत्तीसगढ़ी बोली-भाषा को कार्यालयीन भाषा बनाने के लिए बहुत ज्यादा कारगर उपाय नहीं किये गये। नया राज्य बनने के बाद इस दिशा मे राज्य शासन द्वारा सार्थक पहल की गई है, पर निम्नलिखित कठिनाईयां इसमें बाधक हैं:-छत्तीसगढ़ के अधिकांश उच्चाधिकारी एवं अन्य कर्मचारी छत्तीसगढ़ी भाषा से पूरी तरह से वाकिफ नहीं हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा में बहुत अधिक विविधता है। अलग-अलग क्षेत्रों में एक ही शब्द को अलग-अलग ढंग से लिखने के कारण भी कठिनाइयां है ।कार्यालयीन कार्य में छत्तीसगढ़ी भाषा को इस्तेमाल करने के लिए समुचित मार्गदर्शक किताबों का अभाव है।अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए छत्तीसगढ़ी भाषा में कार्यालयीन कार्य के निष्पादन हेतु सतत् कार्यशाला का आयोजन भी नहीं हो रहा हैं। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए पूर्व में केन्द्र-राज्य शासन द्वारा स्नातकोत्तर की डिग्री लेने पर प्रोत्साहन स्वरूप इंक्रीमेंट दिया जाता था। ऐसी व्यवस्था छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए नहीं बन पाई हैं।
कार्यालयीन कार्य में छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने समाधान के रूप में कारगर कदम उठाने
हेतु सर्वोच्च प्राथमिकता से अधिकारियों-कर्मचारियों को छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग करने की बाध्यता हो।कार्य करने के लिए समुचित मार्गदर्शक किताबें उपलब्ध हो, जो कि छत्तीसगढ़ी के साथ-साथ हिन्दी एवं अंग्रेजी में कैसे लिखना है को सरलतापूर्वक बता सके। उच्चाधिकारियों सहित छोटे कर्मचारियों के लिए छत्तीसगढ़ी में कार्य करने हेतु कार्यशाला का निरन्तर आयोजन हो । छत्तीसगढ़ी भाषा में स्नातक, स्नातकोत्तर की डिग्री लेने पर प्रोत्साहनस्वरूप इंक्रीमेंट देने की पहल होनी चाहिए।सभी विभागों में छत्तीसगढ़ी अनुवादक की भर्ती सहित छत्तीसगढ़ी भाषा विकास समिति का गठन होना चाहिए।किसी भी विभाग/कार्यालय द्वारा सर्वाधिक कार्य-निष्पादन छत्तीसगढ़ी में किया जाता है, उसका वार्षिक मूल्यांकन कर राजभाषा दिवस पर पुरस्कृत किया जाना चाहिए कार्यालय एवं कार्यालय परिसर में छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखित नारें, निर्देश, सूचना पटिटका लगाने की अनिवार्यता होनी चाहिए।
राजभाषा छत्तीसगढ़ी को पाठ्यक्रम में कैसे जोड़ें
राजभाषा छत्तीसगढ़ी को प्राथमिक स्तर से ही जोड़ने की आवश्यकता है। बालपन में ग्राह्य शक्ति बहुत अधिक होती है। साथ ही इस उम्र में ग्राह्य की गई बातें आजीवन स्मृति पटल पर अविस्मरणीय बनी होती है। अतः प्राथमिक स्तर से लेकर विविध मात्रा में महाविद्यालयीन स्तर पर छत्तीसगढ़ी राजभाषा में लिखी कहानियां, कवितायें, गजल, यात्रा, स्मरण, निबंध, साक्षात्कार, नाटक आदि का समावेश होना चाहिये।
प्राथमिक स्तर पर जिस तरह हिन्दी, अंग्रेजी में आवेदन पत्र, पारिवारिक पत्र, विभिन्न विभागों की समस्याओं के निदान हेतु लिखे जाने वाले पत्र आदि लिखना सिखाया जाता है उसी तरह छत्तीसगढ़ी राजभाषा में सिखाने की आवश्यकता है। स्कूल कालेज में वार्षिक समारोह में छत्तीसगढ़ी लोकगीतों नृत्यों, खेलों को अनिवार्य करना चाहिए।
राजभाषा छत्तीसगढ़ी से ऐसे जुड़ेगी जनता
आम जनता तक छत्तीसगढ़ी भाषा को पहुंचाने का सशक्त माध्यम छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोकरंग मंच हैं। इसके माध्यम से अनादिकाल से छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति, भाषा, कथा, कहानी, जनउला, हाना प्रचारित होता आ रहा है। हर्ष की बात है कि ऐसे लोकमंच अब आधुनिक साधन के आने पर रेडियों, टेलीविजन, फिल्म, सोशल मीडिया के साथ साथ विविध राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय महोत्सव में भी प्रमुखता से स्थान पाने लगे हैं।
बस स्टेण्ड, रेल्वे स्टेशन में उदघोषणा छत्तीसगढ़ी भाषा में हो रही है,यह आमजनता तक पहुंच का एक सफल उपाय है। ऐसे सार्वजनिक स्थानों में छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्यादा से ज्यादा से उपयोग होना चाहिये।
साहित्य किसी भी भाषा का हो वह भाषा को समृद्ध बनाने और आमजनों को जोड़ने के लिए सबसे बड़ी भूमिका निर्वहन करता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण भी कहा जाता हे। छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखना, पढ़ना पहले काफी कठिन प्रतीत होता था, किन्तु अब कहते हुए हर्ष हो रहा है कि छत्तीसगढ़ी साहित्य लेखन में उत्साहजनक गति दिखाई दे रही है। जिससे बड़ी संख्या में कवि गोष्ठी, कहानी पठन, नाटको का मंचन और फिल्मों का निर्माण भी हो रहा है। यद्यपि ऐसे आयोजनों में यदाकदा फूहड़ता का भी प्रदर्शन होता है जिस पर अंकुश लगाने का दायित्व साहित्यकारों-पत्रकारों और प्रबुद्धजनों पर है।
छत्तीसगढ़ी को प्रोत्साहित करने हेतु सम्मान
सम्मान, पुरस्कार किसी भी क्षेत्र में विशेष करने वाले को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से दिया जाता है। यह परंपरा मानव समुदाय में अनादिकाल से प्रचलित है। अतः इसका विशेष महत्व आज भी है। छत्तीसगढ़ी राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने वालों को सम्मान पुरस्कार देते समय पारदर्शिता पर गुणवत्ता पर खास ध्यान रखना चाहिये। मेरे विचार से ऐसे पुरस्कारों को देते समय उचित होगा कि इसे तीन वर्गों में अर्थात युवा वर्ग, पुरूष वर्ग और महिला वर्ग में विभिाजित करके देना चाहिये। जिस तरह युवावर्ग में उम्र का बंधन है उसी तरह पुरूष महिला वर्ग में अधिक आयु के साहित्यकारों को प्राथमिकता देना चाहिये।
युवा पीढ़ी ही करेंगे राजभाषा को समृद्ध
किसी भी समाज, परिवार, देश को आगे बढ़ाने के लिए युवा शक्ति को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। अतः छत्तीसगढ़ी राजभाषा को भी आगे बढ़ाने की दृष्टि से युवा पीढ़ी की जागरूकता अत्यधिक प्रभावी होगी।छत्तीसगढ़ के युवा बोलचाल में, लेखन में कार्यालयीन कार्य में और समाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक कार्यक्रमों में यदि विशुद्ध रूप से छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग करते हैं तो निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के साथ साथ अन्य प्रांतो से आये युवा वर्ग के लिए यह अनुकरणीय होगा, जिससे छत्तीसगढ़ी राजभाषा की लोकप्रियता और प्रचलन में वृद्धि होगी।
छत्तीसगढ़ी राजभाषा का भविष्य उज्ज्वल है
छत्तीसगढ़ राज्य जब 2000 में बना तो अनेक सवाल जनमानस में उठ खड़े हुए थे। राजभाषा छत्तीसगढ़ी का भविष्य भी उनमें एक था। आज 22 बरस को पूरा करते नवोदित राज अब एक सुदृढ़, समृद्ध राज्य के रूप में पहचान बनाने अग्रसर है। छत्तीसगढ़ की राजभाषा संबंधी सवाल विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जा रहे हैं, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी में स्नातक, स्नातकोत्तर की उपाधियां दी जा रही है। कला, साहित्य, खान-पान, तीज-त्यौहार,परंपराओं ने व्यवसायिक रूप लेना आरंभ कर दिया है। इसे दृष्टिगत रखते हुए हम कह सकते हैं कि राजभाषा छत्तीसगढ़ी का भविष्य उज्ज्वल है।
खेत-खलिहान, गाॅव गाॅव ले लुगरा धोती ललकारत हे,
छत्तीसगढ़ी माटी म सुआ-कर्मा, ठेठरी-खुरमी महमहावत हे।
विजय मिश्रा ‘अमित’