भारत देश में कुंवार महीने के कृष्ण पक्ष प्रथम दिवस से अमावस्या तक पूरे पन्द्रह दिन – हमारे उन पूर्वजों की स्मृति ,सम्मान,आभार के लिए समर्पित है ।जो इस संसार में जीवित नहीं हैं। कहा जाता है कि इन 15 दिनों में यमराज का द्वार खोल दिया जाता है ।मृत व्यक्ति की आत्मा परलोक से धरा भ्रमण के लिए आते हैं।उन्हें उनकी मरण तिथि को सम्मान पूर्वक आमंत्रित किया जाता है।उनकी पसन्द की चीजें बनाकर पत्तल में सजाकर उनके नाम सेपरोसा जाता है।कोव्वोंको,गाय को ,कुत्ते को,गरीबों को श्रद्धा से खिलाया जाता है। इससे उन्हें तृप्ति मिलती है। खुश होकर वे अपने परीजनों को खुशहाल रहने को आशीर्वाद दे कर जाते हैं।
हर मानव जन्म लेते ही अनेक रिश्तों में बंध जाता है । पंच तत्व से बने देह को आकार मिलते ही वह इनका ऋणी हो जाता है ।
सबसे पहले जन्मदायिनी माता का ऋण उसे चुकाना होता है। यह जल तत्व का प्रतीक है। मातृ नवमी के दिन हमे मातृ पक्ष यानी समस्त नारी देहधारिणी रिश्तों का सम्मान और आभार करना है। माँ,मौसी,चाची,भाभी,,मामी, बहनों का श्राद्ध करना होता है।अर्पण तर्पण से उन्हें तृप्त ,सन्तुष्ट करना है। यों तो मां का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता ।उसके त्याग,ममता,सेवा, करुणा अमूल्य है ।फिर भी जीवित रहते हुए तथा उसके मृत्यु के बाद भी मान ,सम्मान,आदेश ,इच्छा,अनिच्छा का ध्यान रखना चाहिए।मातृ ऋण पूरा करने के लिए , हमे समाज और परिवार को बेटी जन्म देकर पालन पोषण करके भावी माँ का उपहार देना होता है।
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*मनुष्य को पंचतत्व (प्रकृति) के पांच ऋण अवश्य चुकाना चाहिए
??1. माता का ऋण_ (जलतत्व)
??2. पिता का ऋण_ (अग्नितत्व)
??3. गुरु का ऋण_ (आकाशतत्व)
??4. घरती का ऋण_ (पृथ्वीतत्व)
??5. धर्म का ऋण_ (वायुतत्व)
2 पितृ ऋण –अग्नि तत्व का प्रतीक
होता है।
पिता का ऋण चुकाने के लिए – पुत्र जन्म देना होता है। परिवार और समाज को भावी पिता हमे देना है।
सन्तान उत्तपत्ति हुआ है या होने वाला है उनके लिए आर्थिक मदद देना चाहिए एवं स्वावलंबी बनाना चाहिए।
- गुरु ऋण –आकाश तत्व का प्रतीक है इसे चुकाने के लिए – समाज को शिक्षित करना चाहिए , ज्ञान ऐसा बांटना चाहिए जिससे मानव ही नही प्रकर्ति व हर प्राणी की भलाई हो।हमारा ज्ञान लोक कल्याण के लिए निरंतर लगता रहे।
- घरती का ऋण याने पृथ्वी तत्व इसे चुकाने के लिए – कृषि करें या पेड लगाएं या अन्न दान करना चाहिए।*पर्यावरण का संवर्धन करना होता है।
- धर्म का ऋण याने वायु तत्व–
परहित से बड़ा कोई धर्म नहीं होता ।
दूसरों को दुख देने से बड़ा कोई पाप नहीं होता ।इसे चुकाने के लिये – धर्म की रक्षा व धर्म का प्रचार के लिए नित्य समय दें धर्म उसी को कहते है जिसमे हर व्यक्ति का भला हो। अथवा धर्म रक्षकों के सहयोगी बने। भरतीय (सनातन) संस्कृति ही देव संस्कृति है
हम भारतीय पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं हमारा कर्म ही हमारा भाग्य बनाता है।
हमारे अच्छे और बुरे कर्म के अनुसार ही हमारा पुनर्जन्म होता है।
ब्रह्मा जीने घोर तपस्या करके इस संसार की रचना की है। संसार की निरंतरता जे लिए कर्म का अटल विधान बनाया है।
हमारी गलती के लिए क्षमा भगवान भी नहीं कर सकता । यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
अपने कर्म का फल हर हाल में हमे भोगना पड़ता है।
पितृ पक्ष में सुबह नदी स्नान करके लोटे में नदी का जल भरकर सूर्य की ओर देखते हुए पितरों को जल में तिल डाल कर अर्पण किया जाता है
इसके पीछे यह धारणा है कि —तेरा तुझको हम अर्पण करते हैं ।हे सूर्य देव
ऊर्जा स्रोत ,है दृश्य देव संसार की निरंतरता बनाये रखने में तिल मात्र हमारा यह प्रयास स्वीकार कीजिए।
इस प्रवाहित जल धार की तरह हमारे वंश और अंश की निरंतरता यथावत बनाये रखिये ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
उपरोक्त कथन अध्यात्म जगत की सूचना मात्र है,
सत्य के बोध के लिए आपको स्वयं खोज करनी होगी।
सबका जीवन मङ्गलमय हो, सभी सुखी रहे यही हमारी प्रार्थना हो।? चंद्रावती नागेश्वर रायपुर छत्तीसगढ़