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The Voice of People

गज़ल / कीर्ति शर्मा प्रित

ByMedia Session

Sep 7, 2020

दर्दे गम को सजाकर संवारा है मैंने,
कुछ इस तरह आसुओं को पाला है मैंने।

जिक्र होता है, महफ़िल में जब भी खुशी का,
राजे दिल का फसाना छुपाया है मैंने।

गमों की शिकायत करू भी तो कैसे,
सबक जिन्दगी का जिससे सीखा है मैंने।

गुमा उनको कोठी, हवेली का अपने,
कई ताज यूं ही गवाया है मैंने।

मर मिटे, कहते थे जो फना हम ना होंगे,
उन्हें फांसी पर लटके पाया है मैंने।

गुज़ारिश है ये ‘ प्रित’ सबमें जगा दे,
कब्र को गुलिस्ता होते पाया है मैंने।

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