जन्म तो लेती है पर क्या जी पाती है बेटियां?
जन्म तो लेती है पर क्या जी पाती है बेटियां?
जब ये बताया जाता है कि बेटी हुई है
तो सुनने वाले कि पहली आवाज क्या,,,
बेटी हुई है, ऐसी प्रश्न बन जाती है बेटियां,
खेलने के लिए खिलोने नही होते लड़को की तरह,
रसोई के चकले बेलन को ही अपना खिलौना बनाती है बेटियां|
जब शिक्षा की बात आती है तो न्यूनतम शिक्षा से
नवाजी जाती है बेटियां,
घर वाले डरते है नई चीजें दिलवाने से ,
अत्यधिक खर्च उठाने से क्यूंकि
बचपन से ही पराई कही जाती है बेटियां|
जब कभी घर से बाहर जाए और पोषक भी सभ्य अपनाये
तब भी बुरी नजरों से घुरी जाती है बेटियां|
अपने मेहनत से अच्छे नम्बर लाये या लड़को से आगे हो जाये तो शिक्षक की मेहरबानी कहलाती है बेटियां|
दफ्तर में कुछ अच्छा कर जाए या कोई स्थान बडा पाए तो
चरित्र हीन की उपाधि पाती है बेटियाँ|
मायके से ससुराल आती है तो
वहाँ भी परायी कही जाती है बेटियां|
आखिर कार शंघर्स करते करते
एक दिन दम तोड जाती है बेतिया,
जन्म तो लेती है पर क्या जी पती हैं बेटियां?
और सवाल की सवाल ही रह जाती है बेटियां|
चंद्रप्रभा
गिरिडीह (झारखंड)