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चित्र चिंतन कविता -दो गुलाब-

ByMedia Session

Sep 3, 2020


फूल से जब फूल एक टकरा गया
दोनों पर अद्भुत नशा सा छा गया

और ज्य़ादा उस पे लाली आ गई
जब वो मंज़िल नई एक पा गया

मैं दूर हूँ उससे मगर इतना नहीं
जब भी पुकारा मैं दौड़ दौड़ा आ गया

तार दिल के जुड़ गए आपस में यूँ
मांझा पतंग में जैसे कोई उलझा गया

मैं काट लेती जैसे भी तैसे ज़िंदगी
पर जज़्बात दिल के वो मेरे सुलगा गया

जब छुआ होटों से उसको ‘दीप’ ने
गीत मैं भी तब नया एक गा गया
प्रदीप देवीशरण भट्ट
हैदराबाद

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