
फूल से जब फूल एक टकरा गया
दोनों पर अद्भुत नशा सा छा गया
और ज्य़ादा उस पे लाली आ गई
जब वो मंज़िल नई एक पा गया
मैं दूर हूँ उससे मगर इतना नहीं
जब भी पुकारा मैं दौड़ दौड़ा आ गया
तार दिल के जुड़ गए आपस में यूँ
मांझा पतंग में जैसे कोई उलझा गया
मैं काट लेती जैसे भी तैसे ज़िंदगी
पर जज़्बात दिल के वो मेरे सुलगा गया
जब छुआ होटों से उसको ‘दीप’ ने
गीत मैं भी तब नया एक गा गया
प्रदीप देवीशरण भट्ट
हैदराबाद