
बाण विषैला हो सकता है
हो सकता प्राणप्रदायक l
किस उद्देश्य से चढ़ाया
बस वो ही सकता जान l
गगन पटल की और तना
तो व्यक्त ये भी हो रहा
धनुस्वामी हो निशाने पे
ले जिद उसकी मान l
है जाहिर अचूक वार पर
उसको है बहुत ही
दर्प और घमंड
मान और अभिमान l
शायद न्याय कर रहा
या देख के रूप प्रचण्ड
करता नही कुछ भी
है चुप स्वयं भगवान l
बार बार कवि सोचता
जा जा कल्पना लोक
हर बार निरुत्तर हो जाता
बस रह जाता हैरान l
इंद्रधनुष यह कितना सुंदर
कर बाण कोई संधान l
न जाने उतारू क्यों
ले मन मे क्या अरमान l
प्रभात कटगीहा
कटगी