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तुम तन पर मंडराते मधूप

ByMedia Session

Aug 29, 2020

तुम्हारा इजहार था ,मेरा इंकार ।
क्यूंकर ना होता …..
मैं सुंदर ,सुकोमल ललना ,
तुम आवारा मधुकर से ।
कहते तो थे सच्चा प्यार पर ,
बँधे तुम देह के आकर्षण से ।

तभी तो ,
मेरे इंकार ने पहुँचायी,
तुम्हारे पौरुष को ठेस ।
ना मेरी तो किसी की नहीं,
बदले की थी भावना शेष ।

भस्म कर दिया तन मन मेरा ,
डालकर के मुझ पर तेज़ाब ।
इंकार का लिया प्रतिकार ,
पहन पुरुषत्व का नक़ाब ।

क्या बढ गयी मर्दानगी !!
बढ गया मान पौरुष पर !!
नहीं!तुम हो कापुरुष ,नामर्द ,
धिक्कार तुम्हारे लोलुप पर ।

चेहरा ही नही जला मेरा ,
सपने भी जलकर ख़ाक हुये ।
संग संग मेरे मात-पिता भी ,
जलकर पूरे राख हुये ।

तुम तो करते थे सच्चा प्यार,
बता पाओगे मेरा क़ुसूर??
जग ने भी मुझे नकार दिया ,
दिया तुमने रिसता नासूर ।

चलो मैं करती हूँ भूल सुधार ,
लेती हूँ वापस अपना इंकार ।
अब क्या तुम अपनाओगे??
क्या दोगे वो सच्चा प्यार??

धँसी मेरी मृगनयनी ऑंखें ,
क्या तुम नज़र मिला पाओगे ?
रिसता है मवाद अब जिनसे ,
उन गालों को सहला पाओगे?

नही तुम नही कर सकोगे ,
तुम तन पर मंडराते मधूप ।
उर के रिश्ते क्या जानो तुम ,
तन की ही थी तुमको भूख ।

सही था इंकार मेरा तब ,
मुझे अब कोई गिला नहीं ।
तन मन मेरे राख हुये पर ,
टूटा अभी हौंसला नहीं ।

ईश प्रदत्त नसीब से मैं,
हार कभी नहीं मानूँगी ।
तुमने दिखलाई नामर्दी पर ,
मैं स्त्रीत्व ना हारूँगी ।

दुआ यही है अगले जन्म में,
बेटी तुम्हारी बन कर आऊँ ।
वो इजहार करे ,मैं इंकार करूं,
तुमसा आंशिक फिर से पाऊँ ।

देख बेटी का झुलसा मुख ,
तुम होंगे जब नित उद्वेलित ।
देख देख दुख दारुण तुम्हारा,
मैं होती रहूँगी प्रफुल्लित ।

डॉक्टर मंजुला साहू ‘निर्भीक ‘
सी एस ई बी चिकित्सालय
कोरबा पश्चिम ।

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