छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कोल इंडिया की नई अधिग्रहण नीति को भूमि और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की नीति बताया है तथा कहा है कि गरीब आदिवासियों और किसानों को यह नीति स्वीकार्य नहीं है।
कोल इंडिया ने नई भूमि अधिग्रहण नीति तैयार की है, जिसमें नौकरी देने की जगह केवल 2 से अधिकतम 3 हजार रुपये प्रति माह अधिकतम 30 वर्षों तक देने का प्रावधान किया गया है। किसान सभा ने कहा है कि अधिग्रहण से प्रभावित व्यक्ति को एक स्थायी नौकरी मिलने पर न्यूनतम 40000 रुपये वेतन मिलता है। इसके साथ ही उसे पूरे परिवार के लिए चिकित्सा सुविधा, अनुकंपा नियुक्ति,सेवा निवृत्ति के समय लाखों रुपये और पेंशन आदि लाभ प्राप्त होते हैं। लेकिन इसकी जगह 2-3 हजार रुपये देने का प्रावधान करना भूमि और प्राकृतिक संपदा की लूट है।
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि जिस तरह बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का निजीकरण किया जा रहा है और इसे कार्पोरेटों के हाथ में सौंपा जा रहा है, कोल इंडिया का यह फैसला कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए विस्थापन पीड़ितों को नौकरी और मुआवजा देने से बचने का रास्ता तैयार करेगा, जो अकूत मुनाफा तो कमाना चाहते हैं, लेकिन किसी भी तरह के सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वहन से बचना चाहते हैं। यह अधिग्रहण की नीति नहीं, बल्कि आदिवासियों और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के विनाश की नीति है।
उन्होंने कहा कि यह नीति भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाये गए कानूनों और नियम-कायदों के भी पूरी तरह खिलाफ है और सार्वजनिक क्षेत्र की किसी भी कंपनी को ऐसी नीति बनाने का कोई अधिकार नहीं है। किसान सभा ने कहा है कि कोल इंडिया इस जन विरोधी भू-अधिग्रहण की नीति को वापस ले या फिर किसानों के देशव्यापी विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहे।